सादर शुभ दिवस मित्रों, मंच के समस्त प्रबुद्ध जनों को सादर प्रेषित है एक कुण्डलिया…….
“कुण्डलिया”
छोड़ तुझे जाऊं कहाँ, रे साथी ऋतुराज
अब तो पतझड़ आ गया, कैसे कैसे राज
कैसे कैसे राज, वाग नहि देता मुर्गा
भोर दोपहर होय, मनाऊँ कैसे दुर्गा
कह गौतम कविराय, चिरईया दौड़े दौड़
पाए नहीं सराय, कहाँ जाए तुझे छोड़ ।।
महातम मिश्र (गौतम)
वाह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह सुंदर सृजन
सादर धन्यवाद आदरणीय श्री राजकिशोर मिश्र जी, हार्दिक आभार