कविता : देशद्रोहियों से
चीखो मत चिल्लाओ मत
ऐसे शोर मचाओ मत
इनका मकसद धोखेबाज़ी
बातो मे सब आओ मत
जिस थाली मे खाता है तू
उस थाली मे छेद करे
भारत की धरती पे रह के
गैर का गाना गाओ मत
तुझे न भाया भगवा तो भी
तुझको प्यार किया हमने
अब भारत मे दूजों का तुम
झण्डा तो फहराओ मत
सच कहते थे मेरे पुरखे
ये ना ऐसे समझेंगे
ये लातों के भूत है इनको
बातो से समझाओ मत
ज्वालामुखी सा उबल रहा है
जल्दी से निपटारा कर
ज्यादा देर न रोक सकूँगा
अब मुझको उकसाओ मत
— मनोज “मोजू”
बहुत अच्छी कविता ! जिस थाली में खाना उसी में छेद करना. यही देशद्रोहियों का लक्षण है.