फुलवारी..
रंग बिरंगे फूलो से ही
महक रही दादा जी की फुलवारी
कही चंपा कही चमेली
कही अलबेला गुलाबो की डाली
हवा कें मंद झोको से
डोल रही हैं इनकी डाली
भँवरे भी गुनगुनाकर
दे जाते हैं अपनी ज्ञानें
मकरन्दो का रसपान करने
तितली भी आ जाती
गर्मी में भी शीतलता
प्रदान करती यह फुलवारी
हम सभी प्यारे बच्चे भी
इसी फुलवारी के फूल हैं
दादी जी ने सींचा हैं इसको
जैसे हमसब को पाला हैं|
— निवेदिता चतुर्वेदी
बढ़िया !
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