हास्य-व्यंग्य : चला मुरारी दूल्हा बनने!
अपने मुरारी भैया बहुत ही होशियार (खुद को समझने बाले) होनहार एवं प्रगतिशील युवा हैं। चालीस के हो गए हैं लेकिन ब्याह नहीं हुआ कहते हैं राजनीति में जाएंगे वहां ब्याह बालों की रेपुटेशन थोडा डाउन रहता है बिना ब्याह बालों को जनता ज्यादा बोट देता है अब वैसे तो उन्हें प्रधानमंत्री ही बनना है लेकिन मुख्यमंत्री भी बन गए तो काम चला लेंगे तो आजकल नेट पर खोजते रहते हैं कि कौन सा मुख्यमंत्री आजकल लोकप्रियता में है और मुख्यमंत्री बनने के लिए क्या क्या योग्यता चाहिए।
पहली बात तो एक जोड़ा टुटा चप्पल और जूता बड़े संभाल के रखे हैं भैया! अरे चुनाव समय में बहुत ही खास जरूरत पड़ता है भई!! नहीं तो कोई समझेगा कि जमीन से जुड़ा नेता नहीं है और फालतू ही में बोट नहीं देगा, अभी भैया अपना चप्पल संभाल ही रहे थे कि लल्लन चाचा आ गए और …..”अरे ओ बुढबक ! का कर रहे हो! ई टूटा फूटा चप्पल जूता काहे के लाने रखे हो हैं?”
“अरे ऊ चाचा चुनाव आ रहा है न इसलिए, राम राम चाचा!”
“हाँ हाँ रामराम, ठीक– ठीक है ऊ हम तुम्हारे खातिर इक ठो रिश्ता लाये हैं अब इत्ते बड़े हो गए हो ब्याह कर लो और हाँ चुनाव और टूटा जूता चप्पल!! का सठिया गए हो का?”
“अरे नहीं चाचा आजकल का लोकप्रिय नेता ये ही पहनता है और अगर अच्छा कपडा जूता जो नेता पहनता है तो बहुत किरकिरी होता है बहुत बात सुनाते हैं लोग और इसमें का है जनता के सामने बस थोड़ी देर को ही तो पहनना है फिर तो अगर मुख्यमंत्री बन गए तो समझो हो गए बारे न्यारे!!! अरे बढ़िया ए. सी. चैम्बर में बैठो बढ़िया गाड़ी में बैठो मन चाहा करो नाहीं तो जमीन पे बैठ जाओ ई लोकतंत्र है चाचा! अब राजनीती ऐसे ही होती है बढ़िया बाला नेता बनना है तो ई सब करना पड़ता है।”
लल्लन चाचा — “हमको तुम्हारी बात कुछ समझ में नहीं आता अब हम फ़ोटो लाये हैं ऊ का देख लो नहीं तो हम तो रिश्ता पक्का कर देव!! समझे!”
“न चाचा हम लड़की देखूँगा खुद!”
“तो ठीक है चल, लड़की अपने चाचा के यहां आई है देख ले” और मुरारी और चाचा पहुँच गए।
मुरारी लड़की से– “तो आप कित्ता पढ़े हो?”
लड़की –“का मतलब –कित्ता पढ़े हो, हमको नौकरी पे रखोगे का?”
“अरे नहीं आप समझी नहीं हमका पढ़ी लिखी बीबी चाहिए ऊ का है के हमको बड़ा बाला नेता बनना है।”
सुनीता — “अरे तो हमको का तुम्हारा चपरासी बनना पड़ेगा? तुम सबका पढ़ी लिखी बीबी चाहिए, मगर ऊ के नौकरी करने में तुमलोग का नाक कटता है तो का पढ़ी लिखी बीबी का अचार पड़ेगा। अरे बाहर भीतर तो ऐसे पूछत हो के जाने कित्ते उदारवादी हो पढ़ी हो! हुंह! नौकरी में हो! तनिक घर भीतर की सुध लो अपनी अपनी बहनो को पढ़ाओ नौकरी पे लगवाओ तब बदलेगा भारत और तब बनोगे अच्छे नेता … ई टूटी चप्पल और फटा पुराना कपडा पहनने से नेता नहीं बनते हैं थोड़े समय बाद जनता इत्ती गाली देती है की कानन पे पूरा मफलर चढ़ाना पड़ता है समझे कि नाहीं। चलो आगे बढ़ो हमका तुमसे शादी नहीं करनी …..”
लल्लन चाचा —-“चल बेटा मुरारी नहीं तो तेरा और तेरी राजनीती का अब ही यहीं मुरब्बा डाल देगी जे सुनीता, चल बेटा भाग!””
और दोनों भाग जाते हैं।
— अंशु प्रधान
हा हा
करारा व्यंग्य !