गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल – “हैं बहुत बेबस मगर व्यवहार से”

प्यार भी होते हैं अब हथियार से |

ओ समन्दर भी हुये हैं थार से |

दोस्त कहके जब बुलाता है कोई
शब्द लगते ये मुझे औज़ार से |

बात से हम तो मुकरते हैं नहीं
हैं बहुत बेबस मगर व्यवहार से |

बात करते शीरियों की धार से
काम उनके हैं कटारी वार से |

हैं नहीं मजनू ओ लैला भी कहाँ
प्यार में अब आँख लडती चार से |

गौर “छाया” जब करे अखबार पर
लाल पन्ने ही दिखें अत्वार से |

अत्वार=आचरण
छाया शुक्ला “छाया”

छाया शुक्ला

छाया शुक्ला "छाया" प्रकाशित पुस्तक "छाया का उज़ास"

3 thoughts on “ग़ज़ल – “हैं बहुत बेबस मगर व्यवहार से”

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत अच्छी ग़ज़ल !

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत अच्छी ग़ज़ल !

    • छाया शुक्ला

      हार्दिक आभार आदरणीय !

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