ग़ज़ल – “हैं बहुत बेबस मगर व्यवहार से”
प्यार भी होते हैं अब हथियार से |
ओ समन्दर भी हुये हैं थार से |
दोस्त कहके जब बुलाता है कोई
शब्द लगते ये मुझे औज़ार से |
बात से हम तो मुकरते हैं नहीं
हैं बहुत बेबस मगर व्यवहार से |
बात करते शीरियों की धार से
काम उनके हैं कटारी वार से |
हैं नहीं मजनू ओ लैला भी कहाँ
प्यार में अब आँख लडती चार से |
गौर “छाया” जब करे अखबार पर
लाल पन्ने ही दिखें अत्वार से |
अत्वार=आचरण
छाया शुक्ला “छाया”
बहुत अच्छी ग़ज़ल !
बहुत अच्छी ग़ज़ल !
हार्दिक आभार आदरणीय !