ग़ज़ल
बिन तेरे दिल कहीं नहीं लगता
छोड़के तुझको कुछ नहीं जंचता
जब तलक तू नजर नहीं आता
सकूनों-करार तेरे बिन नहीं रहता
बस गयी है रग-रग में तेरी खुशबू
मेरा दिल बस में मेरे नहीं रहता
तोड़ दो चुप्पी अब गुस्सा छोड़ो
अच्छा शामे-तन्हा नहीं लगता
दौराने-सफर में तुझे मुकाम मिले
“अरुण” दश्ते-तन्हाई नहीं जंचता
— अरुण निषाद
वाह !
वाह !
sabhar dhanyawad sir ji…..sadar pranam….
तोड़ दो चुप्पी अब गुस्सा छोड़ो
अच्छा शामे-तन्हा नहीं लगता. ग़ज़ल अच्छी लगी .
धन्यवाद.सादर प्रणाम