सरस्वती वंदना !
हे ! शारदे हे, नित्य नवल
शुभ्र वस्त्र आसन कमल
ज्ञान विवेक का वर दो
याद करूँ नैना सजल
भानु किरण सी उज्जवल
मन को करती हो निर्मल
कभी दामिनी सी गिरती हो
अंधकार में मष्तिस्क पटल ।
वंजर मानस में कल कल
बहती हो,हो जल छल छल
कृपण, मंद बुद्धि जन जन में
भरदो ज्ञान प्रकाश धवल ।
— अंशु प्रधान (वंदना )
बढ़िया !