गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

 

जो जलें उनको जलाया कीजिये
बेसबब ही मुस्कुराया कीजिये।

जिंदगी है चार दिन की चांदनी
राह चलते को हँसाया कीजिये ।

भूल बैठे हैं भले ही प्यार को
खत पुराने मत जलाया कीजिये।

चार धामों की जरूरत भी नहीं
माँ के पैरों को दबाया कीजिये ।

मुश्किलों में हौसला मत हारिये
जिंदगी को मत मिटाया कीजिये

धर्म महलों को बनाने के लिये
झोंपड़ी  को मत जलाया कीजिये।

— धर्म पाण्डेय