गीत
अब चाँद सुहाना लगता नहीं ,ना ही शाम सुहानी लगती है।
हर आईने में सूरत अपनी कितनी बेगानी लगती है ।।
छुट गये पीछे कितने बीते लम्हों के साये वो
टूट गये कच्चे धागे रूठ गये अपने पराये वो
एक जख्म है साथ हरा-भरा जिसकी तासिर पुरानी लगती है
हर आईने में सूरत अपनी कितनी बेगानी लगती है ।।
हैं कदम कदम पर ठोकरें ,छालें -छाले पाँव में
शहर शहर सन्नाटा है तन्हाई पसरी है गाँव में
ऐसे आलम में अपनी आहट भी मुझको अन्जानी लगती है।।
हर आईने में सूरत अपनी कितनी बेगानी लगती है ।।
मनभावन गीत