कविता

वो सोचते होंगे

वो सोचते होंगे
कितनी आसानी से भुला दिया मैंने उनको
कितना हसाया था
फिर क्यों रुला दिया मैंने उनको
सच तो ये है
न कभी भुलाया न कभी रुलाया है उनको
ये तो वक़्त की आँधियाँ थी
जो चली तो ऐसी चली
कि हर अहसास उड़ा ले गयी
और खामोशियों में सुला दिया उनको
और अन्तर्मन् तक हिला दिया हमको
और उन्हें लगता है
कितनी आसानी से भुला दिया मैंने उनको
एक सच ये भी है
चाहे वो आज मेरे हक़दार नही
मगर शब्दों में मेरे स्याही बन रहते है
आँखों में चाहे उनके सपने नही
पर पलकों में आंसू बन रहते हैं
फिर भी खुद को न माफ़ कर पाएंगे
गर अब भी यही लगता है उनको
की कितनी आसानी से भुला दिया मैंने उनको

महेश कुमार माटा

नाम: महेश कुमार माटा निवास : RZ 48 SOUTH EXT PART 3, UTTAM NAGAR WEST, NEW DELHI 110059 कार्यालय:- Delhi District Court, Posted as "Judicial Assistant". मोबाइल: 09711782028 इ मेल :- [email protected]

8 thoughts on “वो सोचते होंगे

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत सुंदर कविता !

  • लीला तिवानी

    प्रिय महेश भाई जी, वक़्त की आँधियों को कब कौन रोक पाया है? अति सुंदर भावपूर्ण कविता.

    • महेश कुमार माटा

      सादर धन्यवाद

    • महेश कुमार माटा

      सादर धन्यवाद

  • लीला तिवानी

    प्रिय महेश भाई जी, वक़्त की आँधियों को कब कौन रोक पाया है? अति सुंदर भावपूर्ण कविता.

  • राज किशोर मिश्र 'राज'

    वाह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह लाजवाब

    • महेश कुमार माटा

      धन्यवाद मित्र

    • महेश कुमार माटा

      धन्यवाद मित्र

Comments are closed.