गीत/नवगीत

आरक्षण की बीमारी

 

जनता के मौलिक अधिकारों का जब होता भक्षण है
स्वार्थ साधने हेतु जब कुछ करते उसका रक्षण है
जात पात में बँटने लगे तो ये विनाश का लक्षण है
समझ आ गया नाम इसी बीमारी का आरक्षण है

जात पात में मुल्क ना बांटो, देश हमारा सबका है
आरक्षण भी दे देने का  ये आधार गज़ब का है
कोढ़ में खुज़ली जैसे मिल जाना उसमें मज़हब का है
अगड़ों में निर्धन लोगों का, बहुत बड़ा इक तबका है

सूरज की किरणें बोलो क्या जात पूछ के आती हैं
गंगा भी क्या जात पूछ के लोगों को नहलाती है
हवा मुल्क की जात पात का भेद नहीं कर पाती है
तो फिर क्यों इस देश में सबसे जातें पूछी जाती हैं

ऐसा आरक्षण हो जिससे कम ना अपना प्यार हो
जात धर्म कुछ भी हो लेकिन एक सा ही व्यवहार हो
आरक्षण हो निश्चित ही हो जो सबको स्वीकार हो
जात धर्म ना हो केवल निर्धनता ही आधार हो

— मनोज “मोजू”

मनोज डागा

निवासी इंदिरापुरम ,गाजियाबाद ,उ प्र, मूल निवासी , बीकानेर, राजस्थान , दिल्ली मे व्यवसाय करता हु ,व संयुक्त परिवार मे रहते हुए , दिल्ली भाजपा के संवाद प्रकोष्ठ ,का सदस्य हूँ। लिखना एक शौक के तौर पर शुरू किया है , व हिन्दुत्व व भारतीयता की अलख जगाने हेतु प्रयासरत हूँ.

One thought on “आरक्षण की बीमारी

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छा गीत !

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