कुण्डली/छंद

मनहर घनाक्षरी छंद

मनहरण घनाक्षरी छंद
1.
छाये रहे घनश्याम, आये नहीं घनश्याम
जाने किस ओर गये, जाने कहाँ बरसे
अमिय प्रेम सागर, भरने लाई गागर
सखि न सहेली चली मैं अकेली घर से
मोरपंख सजाऊँगी, साँवरिया रिझाऊँगी
मगन मयूर मन मोहन को तरसे
अधर धरि मुस्कान, मन में मधुर गान
डर नहीं लागे अब विरह के डर से

२.
बेटियाँ वेद ऋचाएँ, बेटियाँ खिली दुआएँ
ख़ुशनसीब वो घर, बेटियाँ जहाँ पलें।
जग से मिटा दो पाप, इनको हो न संताप
दहेज की ज्वालाओं में, बेटी अब ना जलें।
हँसी की फुलझड़ियाँ, बेटियाँ खिली कलियाँ
सुनो इस चमन में, इनको ना कुचलें।
भविष्य की धरोहर, रखिये संभालकर
इनके बिना किसी के, वंश तक ना चलें।

३.
श्याम लिए बंसी हाथ, रास करे गोपी साथ
नाच भी तो नाथ संग, कितना निराला है।
हिय धरि प्रेम पीर, आँखों में भरा है नीर
मीरा को भी मिलता जो, जहर का प्याला है।
काली घटा घनघोर, छाया तम चारों और
भीतर की जोत जला, तब उजियाला है।

किसी से न लेना-देना, यहीं सब छोड़ देना
तेरे ही तो हाथों मेरी, सांसों की ये माला है।।

४.
कण कण पावन है, अति मन भावन है
शीश ऊँचा किये हुए, पर्वत हिमाला है….
मौसम कई मिलते, फूल हैं कई खिलते
मनोहारी मेरा देश, कितना निराला है….
शहीदों को है नमन, खून से सींचा चमन
उनके ही दम से तो देश में उजाला  है….
आदर सेवा सत्कार, सबके लिए उदार
शील संस्कारों सजी यह पाठशाला है…

— अनिता मंडा

One thought on “मनहर घनाक्षरी छंद

  • विजय कुमार सिंघल

    उत्तम छंद !

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