कविता : होली
होली !
हाँ कब की
होली
मैं तो तेरी पिया
उस पल से
जब तिरछी नजर से
तुमने मुझे देखा था
और मैं खो गयी थी
उन आँखों मैं
हाँ उस पल भी
जब तुमने मुझे हाथ थाम कर
वरमाला पहनाई थी
और मैं बंध गयी थी
उसी पल तेरे प्यार में
हाँ उस पल भी
जब गठजोड़ से जुड़ कर
तुमने अग्नि समक्ष
लिए थे मेरे संग फेरे
और तब से मेरी परिधि
सिर्फ तुम्ही हो एक उपहार से
रंगों की होली
सिर्फ कच्चे रंगों की
तेरे मेरे प्यार का रंग
इतना गूढ़ा
तेरे एक पल के प्यार से
मेरी तो रंग बिरंगी होली
कब की होली
— नीलिमा शर्मा निविया
अच्छी कविता !
बहुत सुन्दर कविता .