कविता

कविता : खामोशी का सुर

सबकुछ वही है
वही सुर…वही साज़
शाखों पे गिरती हुई
शबनम की आवाज़
हाँ सबकुछ वही है
वही रंग…वही रूप और
मिट्टी की वही सोंधी सी खुशबू
अब भी चलती है सबा हौले से
इस खौफ़ से कि पत्ते कहीं
खड़खड़ा ना उठे
हाँ…इन सब के साथ
एक और सुर भी है
मेरी नज़्म से जुदा हुआ
खामोशी का सुर।

— रश्मि अभय


 

रश्मि अभय

नाम-रश्मि अभय पिता-श्री देवेंद्र कुमार अभय माता-स्वर्गीय सुशीला अभय पति-श्री प्रमोद कुमार पुत्र-आकर्ष दिवयम शिक्षा-स्नातक, एलएलबी, Bachelor of Mass Communication & Journalism पेशा-पत्रकार ब्यूरो चीफ़ 'शार्प रिपोर्टर' (बिहार) पुस्तकें- सूरज के छिपने तक (प्रकाशित) मेरी अनुभूति (प्रकाशित) महाराजगंज के मालवीय उमाशंकर प्रसाद,स्मृति ग्रंथ (प्रकाशित) कुछ एहसास...तेरे मेरे दरम्यान (शीघ्र प्रकाशित) निवास-पटना मोबाइल-09471026423 मेल [email protected]

One thought on “कविता : खामोशी का सुर

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छी कविता !

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