कविता : खामोशी का सुर
सबकुछ वही है
वही सुर…वही साज़
शाखों पे गिरती हुई
शबनम की आवाज़
हाँ सबकुछ वही है
वही रंग…वही रूप और
मिट्टी की वही सोंधी सी खुशबू
अब भी चलती है सबा हौले से
इस खौफ़ से कि पत्ते कहीं
खड़खड़ा ना उठे
हाँ…इन सब के साथ
एक और सुर भी है
मेरी नज़्म से जुदा हुआ
खामोशी का सुर।
— रश्मि अभय
अच्छी कविता !