कविता : फूलों की बात
जब से नन्हा सा शिशु
घर पर मेरे आया
गुलशन में फूलों सा
आँगन मेरा महकाया
कोना -कोना महका
जब बौर फूल में आया
फैली सुगन्ध चहुँ ओर
घर और बाहर महकाया
अब तरूण पादप बना
अंग अंग हुआ लालिमा युक्त
हरियाली का आगाज हुआ
अंग अंग सिंहरने लगे
नये खून का संचार हुआ
अब फूल वो घर का ही नही
बाहर भी खूशबू फैलाता है
भविष्य लगता है
मेरा सुरक्षित
जैसे प्रोढ़ वृक्ष मे बदलेगा
गर्मी में शीतलता देगा
वारिश में ओट देंगा
— डॉ मधु त्रिवेदी
सुंदर कविता !
वाह
बहुत सुंदर रचना