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लेख : अभिव्यक्ति की आज़ादी की आड़ में राष्ट्द्रोह और उग्रवाद

पिछले दिनों दिल्ली के जेएनयू प्रकरण ने जहाँ देश की अखंडता को चुनौती दी है तो वहीँ दुसरी ओर हरियाणा के जाट समुदाय द्वारा आरक्षण की मांग को लेकर हिंसक आन्दोलन हुआ है l ये दोनों ही घटनायें भारत के हर जिम्मेदार नागरिक को सोचने पर विवश करती हैं l इस बात से भी इन्कार नहीं किया जा सकता कि राजनीति भी कहीं न कहीं इन घटनाओं के इर्द – गिर्द घुमती नज़र आती है l अभिव्यक्ति की आज़ादी का यह अर्थ कदापि नहीं निकाला जाना चाहिए कि किसी को भी कुछ भी करने या बोलने की आज़ादी है l संविधान के अनुच्छेद 19(2) में ही अभिव्यक्ति की आज़ादी की सीमाओं को भी बर्णित किया गया है l

जेएनयू में संसद हमले के दोषी और देश के सर्वोच्च न्यायालय से फांसी की सजा पा चुके अफजल गुरु को क्रांतिकारी और शहीद का दर्जा देकर देश के टुकड़े – 2 करने के नारे लगाये जाना, शिक्षा के इन मंदिरों को कटघरे में लाकर खड़ा कर देता हैं l इस तरह के शैक्षणिक संस्थान हमारी युवा पीढ़ी में कौन सी तथाकथित अभिव्यक्ति और अलगवाद के बीज अंकुरित कर रहे हैं ? चंद उन्मादी और गुमराह छात्रों की बजह से जेएनयू के सभी छात्रों को भी कसूरवार की तरह देखा जाना भी उचित नहीं है l इसी घटना क्रम के दौरान जम्मू कश्मीर के पैम्पोर में जेएनयू से ग्रेजुएट हुए कैप्टन तुषार महाजन ने आतंकवादियों से लोहा लेते हुए देश की रक्षा के लिए अपने प्राणों का बलिदान दे दिया l

देश की संसद में चल रहे मौजूदा सत्र में जेएनयू प्रकरण भी खूब चर्चा का विषय बना रहा l मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने ऐसे – 2 तथ्यों और आंकड़े प्रस्तुत किये हैं जो रोंगटे खड़े कर देने वाले हैं l पाठ्यक्रम में पढाई जा रही कक्षा चौथी और कक्षा छठी की इतिहास की पुस्तकों में पढाई जा रही विवादित सामग्री को एनसीईआरटी के विरोध के बाद भी हटाया नहीं गया l इन पुस्तकों में हिंसा और सांप्रदायिक शब्दाबली का प्रयोग एवं कश्मीर के अलगाववादियों की सोच को अलग ढंग से पेश करना भी अशोभनीय है l इस तरह का पाठ्यक्रम निश्चित तौर पर बच्चों के बाल मनोविज्ञान पर नकारात्मक प्रभाव डालता है l जेएनयू में पश्चिम बंगाल के आदिवासी छात्रों द्वारा कागज पर लिखे गए नारे और माता दुर्गा और महिषासुर के बारे में भ्रामक प्रचार बहुत ही हतोत्साहित करने वाला है l महिषासुर शहादत दिवस के नाम पर इतिहास को तोड़ – मरोड़ कर भ्रामक प्रचार के माध्यम से ये बामपंथी विचारधारक कौन से आधुनिक भारत का निर्माण करना चाहते हैं l

दूसरी ओर हरियाणा में अपनी बात को मनवाने के लिए देश की अरबों – खरबों रुपये की सम्पति को तहस – नहस कर दिया जाता है l राजमार्गों और ट्रेन की पटरी को रोककर यातायात को अवरूध किया जाता है और मंत्रियों के घरों पर भी आगजनी और हमले की बारदातें होती हैं l सर्वोच्च न्यायालय ने भी चिंता जाहिर करते हुए कहा है कि किसी भी आन्दोलन के दौरान प्रदर्शनकारी किसी भी तरह की सम्पति को नुक्सान नहीं पहुंचा सकते , मगर सवाल यह पैदा होता है कि इस फैसले का सख्ती से कैसे पालन करवाया जाये l इस हिंसक आन्दोलन में अब तक 19 लोगों की जान भी चली गई जबकि 150 से भी ज्यादा लोग घायल भी हुए हैं l हालात इतने भयावय हो गए थे की केंद्र सरकार को हस्तक्षेप करने सेना बुलानी पड़ी l दिल्ली को पानी की आपूर्ति करने वाली मूनक नहर को भी आन्दोलनकारियों ने अपने कब्जे में ले रखा था l अगर समय रहते सेना मूनक नहर पर को अपने अधिकार में नहीं लेती तो दिल्ली में हालात बदतर हो जाते l

तेजी से बदल रहे इन राष्ट्रीय परिदृश्यों के सन्दर्भ में हमें गंभीरता से सोचना होगा कि हम किस ओर जा रहे हैं l पहले पटेल और अब जाट आरक्षण l क्या आरक्षण प्राप्ति का यह उग्रवाद, स्वाभिमानहीन और पंगु पीढ़ी तैयार कर देने की राह नहीं है ? गरीबी और अभाव कभी भी किसी व्यक्ति विशेष की जाति देखकर नहीं आते तो फिर महज जाति के आधार पर आरक्षण की मांग करना सिरे से ही गलत है l आर्थिक आरक्षण ही जातिगत आरक्षण के इस उग्रवाद पर लगाम लगा सकता है, जिससे सभी जातियों के जरूरतमंद लोगों को समानता और एकता के सूत्र में पिरोने की संभावना परिलक्षित होती है l

मनोज चौहान

जन्म तिथि : 01 सितम्बर, 1979, कागजों में - 01 मई,1979 जन्म स्थान : हिमाचल प्रदेश के मंडी जिला के अंतर्गत गाँव महादेव (सुंदर नगर) में किसान परिवार में जन्म l शिक्षा : बी.ए., डिप्लोमा (इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग), पीजीडीएम इन इंडस्ट्रियल सेफ्टी l सम्प्रति : एसजेवीएन लिमिटेड, शिमला (भारत सरकार एवं हिमाचल प्रदेश सरकार का संयुक्त उपक्रम) में उप प्रबंधक के पद पर कार्यरत l लेखन की शुरुआत : 20 मार्च, 2001 से (दैनिक भास्कर में प्रथम लेख प्रकाशित) l प्रकाशन: शब्द संयोजन(नेपाली पत्रिका), समकालीन भारतीय साहित्य, वागर्थ, मधुमती, आकंठ, बया, अट्टहास (हास्य- व्यंग्य पत्रिका), विपाशा, हिमप्रस्थ, गिरिराज, हिमभारती, शुभ तारिका, सुसंभाव्य, शैल- सूत्र, साहित्य गुंजन, सरोपमा, स्वाधीनता सन्देश, मृग मरीचिका, परिंदे, शब्द -मंच सहित कई प्रादेशिक एवं राष्ट्रीय पत्र - पत्रिकाओं और समाचार पत्रों में कविता, लघुकथा, फीचर, आलेख, व्यंग्य आदि प्रकाशित l प्रकाशित पुस्तकें : 1) ‘पत्थर तोड़ती औरत’ - कविता संग्रह (सितम्बर, 2017) - अंतिका प्रकाशन, गाजियाबाद(ऊ.प्र.) l 2) लगभग दस साँझा संकलनों में कविता, लघुकथा, व्यंग्य आदि प्रकाशित l प्रसारण : आकाशवाणी, शिमला (हि.प्र.) से कविताएं प्रसारित l स्थायी पता : गाँव व पत्रालय – महादेव, तहसील - सुन्दर नगर, जिला - मंडी ( हिमाचल प्रदेश ), पिन - 175018 वर्तमान पता : सेट नंबर - 20, ब्लॉक नंबर- 4, एसजेवीएन कॉलोनी दत्तनगर, पोस्ट ऑफिस- दत्तनगर, तहसील - रामपुर बुशहर, जिला – शिमला (हिमाचल प्रदेश)-172001 मोबाइल – 9418036526, 9857616326 ई - मेल : [email protected] ब्लॉग : manojchauhan79.blogspot.com

2 thoughts on “लेख : अभिव्यक्ति की आज़ादी की आड़ में राष्ट्द्रोह और उग्रवाद

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत अच्छा लेख! आपने बिल्कुल सही लिखा है।

    • मनोज चौहान

      हौसला -अफजाई के लिए आभार सर …….!

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