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किसने बनाया केजरी और कन्हैया को हीरो

९ फरवरी २०१६ के पहले कन्हैया कुमार को कितने लोग जानते थे ? यह नौजवान जे एन यु छात्र संघ के अध्यक्ष के रूप में वह केवल यूनिवर्सिटी कैम्पस तक ही जाना जाता था. ९ फरवरी को जे एन यु कैम्पस के अन्दर कुछ कार्यक्रम हुए. इसमें कुछ नारे लगाये गए. ये नारे वर्तमान सरकार और देश की अखंडता के खिलाफ थे, ऐसा बताया गया. देश विरोधी नारे लगानेवाले तो परदे के पीछे थे और परदे के पीछे से ही भाग निकले. छात्र संघ का अध्यक्ष होने के नाते कन्हैया कुमार पर आरोप लगा कि उसके रहते देश विरोधी नारे लगे और इसमें उसकी भी भागीदारी थी. १२ फरवरी को उसे देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तार कर १५ फरवरी को पटियाला कोर्ट में पेश किया जाना था. तभी वहां मौजूद तथाकथित कुछ वकीलों ने उस पर अपना हाथ साफ़ किया. पुलिस मूक दर्शक बनी रही. यह विडियो/फोटोसूट भी सुर्खी बनी और कन्हैया पर कैमरा केन्द्रित हो गया. कई दिन सुनवाई के बाद अंत में पटियाला हाई कोर्ट ने उसे कुछ हिदायत देते हुए ६ महीने के लिए अंतरिम जमानत पर २ मार्च को रिहा कर दिया. ३ मार्च को कानूनी खानापूरी के बाद पुलिस के द्वारा ही सुरक्षित और गोपनीय तरीके से उसे जे एन यु कैम्पस में पहुंचा दिया गया.

रिहाई के बाद से ही कन्हैया कुमार अचानक हीरो बन गया और सभी प्रमुख मीडिया अपना अपना कैमरा लेकर पहुँच गए उसका इंटरव्यू लेने. यही नहीं जे एन यु के छात्रों ने उनके स्वागत का भरपूर इंतजाम किया. अपने स्वागत कार्यक्रम में कन्हैया ने लगभग ५० मिनट भाषण दिया, जिसका कई चैनलों ने लाइव प्रसारण भी किया. अपने ५० मिनट के भाषण में कन्हैया ने भारत से नहीं, भारत में आजादी चाहता है. साथ ही उसने मोदी सरकार, आर एस एस, मोदी जी, स्मृति ईरानी को चुन चुन कर निशाना बनाया. कन्हैया के इस भाषण की मोदी विरोधी पार्टियों के नेताओं ने जमकर सराहना की, जिनमे केजरीवाल, नीतीश कुमार, सीताराम येचुरी आदि प्रमुख हैं. अब सवाल यह है कि कन्हैया को हीरो बनाया किसने. जिस लोकप्रियता की ऊँचाई पर पहुँचाने में मोदी जी को १४ साल लगे, केजरीवाल को ३ साल, उसी लोकप्रियता की ऊँचाई पर कन्हैया मात्र २१ दिनों में पहुँच गया.

मशहूर चिंतकों के अनुसार अरविन्द केजरीवाल जो आज दिल्ली के मुख्यमंत्री हैं, उन्हें कांग्रेस ने नायक बनाया तो आज जेएनयू छात्र संघ अध्यक्ष  कन्हैया कुमार बीजेपी की राजनीति ने हीरो बना दिया. दोनों की मुहिम आजादीहै और लक्ष्य आम आदमी का विकास. आइए, इन आठ प्वाइंट्स में जाने क्यों एक-दूजे से मिलते-जुलते हैं केजरीवाल और कन्हैया.

  1. कांग्रेस और बीजेपी का कनेक्शन- अरविंद केजरीवाल दिल्ली से लेकर देश के हर कोने में चर्चित हुए और एक प्रभावी राजनेता के तौर पर उभरे. केजरीवाल राजनीति में आए उसके लिए कहीं न कहीं कांग्रेस का हाथ है. दिल्ली में कांग्रेस की नीतियों के खिलाफ आवाज उठाने वाले केजरीवाल को देश की जनता ने हाथों-हाथ लिया. कन्हैया कुमार ने जेएनयू के अंदर आरएसएस और बीजेपी के बढ़ते दखल को मुद्दा बनाया. हाल ही में कथित राष्ट्रविरोधी कार्यक्रम में कन्हैया का नाम सामने लाने में बीजेपी और उसके छात्र संगठन एबीवीपी का हाथ है.
  2. दोनों आंदोलनों के जरिए हीरो बने- अरविंद केजरीवाल को अन्ना हजारे के जनलोकपाल आंदोलन ने उभारा. तो कन्हैया कुमार कोजेएनयू में राष्ट्रवाद और राष्ट्रद्रोह की लड़ाई ने हीरो बनाया.
  3. केजरीवाल ने भी यही कहा था- अन्ना आंदोलन के समय केजरीवाल ने लगभग बार राजनीति में आने के सवाल पर यही कहा था कि वह राजनीति करने नहीं आए हैं. वह राजनीति की मुख्यधारा से नहीं जुड़ेंगे. हालांकि बाद में वह अन्ना से अलग हो गए और पार्टी बना ली. कन्हैया कुमार ने भी जेल से रिहा होने के बाद अपने पहले भाषण में ही कहा कि वह नेता नहीं बनना चाहते. वह टीचर बनना चाहते हैं. हालांकि जेएनयू विवाद ने उनकी राजनीतिक राह आसान कर दी है.
  4. आजादी की मुहिम से दोनों चर्चा में आए- केजरीवाल ने अन्ना के साथ मिलकर देश से भ्रष्टाचार मिटाने और भ्रष्टाचार से आजादी दिलाने की मुहिम छेड़ी था और दिल्ली की सत्ता संभालने के बाद भी वह लगातार अपनी इस बात को दोहराते रहे हैं. कन्हैया कुमार ने कहा है कि वह देश से नहीं बल्कि देश में आजादी चाहते हैं. वह देश को गरीबी, भुखमरी, भेदभाव से आजादी दिलाना चाहते हैं.
  5. जनता की लड़ाई लेकर आगे बढ़े अरविन्द केजरीवाल ने आम आदमी के हक की लड़ाई का नारा देकर राजनीति में एंट्री ली. कन्हैया कुमार ने कहा कि वह आम छात्रों का लड़ाई लड़ रहे हैं और चाहते हैं कि सभी पढ़ें और उनकी तरह आगे बढ़ें.
  6. दोनों तिहाड़ जेल गए अरविंद केजरीवाल को केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी की मानहानि के मामले में पटियाला हाउस कोर्ट ने मई 2014 में न्यायिक हिरासत में तिहाड़ जेल भेजा था. कन्हैया कुमार को 9 फरवरी को जेएनयू में हुई कथित देश विरोधी घटना में शामिल रहने के आरोप में पटियाला हाउस कोर्ट ने ही न्यायिक हिरासत में तिहाड़ जेल भेजा था. फिलहाल कन्हैया अंतरिम जमानत पर रिहा हुए हैं.
  7. सादगी ही पहचान केजरीवाल अपनी सादगी के लिए काफी चर्चा में रहे हैं. केजरीवाल का ड्रेस कोड भी उनकी पहचान बन चुका है. कन्हैया की सादगी भी लोगों के सामने है. छात्र संघ अध्यक्ष बनने के बाद भी उनमें तमाम छात्र नेताओं जैसा रौब नहीं आया.
  8. फिलहाल दोनों बीजेपी के खिलाफ दिल्ली में दोबारा सत्ता पाना हो या फिर 2014 के लोकसभा चुनाव, केजरीवाल की लड़ाई कांग्रेस से हटकर बीजेपी पर आ गई. देश की राजधानी में तमाम प्रशासनिक मुद्दों पर केजरीवाल और बीजेपी की लड़ाई खुलकर सामने भी आ चुकी है. कन्हैया की लड़ाई भी जेएनयू में कथित राष्ट्रविरोधी गतिविधि मुद्दा बनाने वाली बीजेपी के खिलाफ ही है. जेल से रिहा होने के बाद भी कन्हैया की बातों में आरएसएस और बीजेपी के खिलाफ गुस्सा साफ दिखा है.

अब तो भविष्य ही बताएगा कि कन्हैया कुमार का भविष्य क्या है. अभी अभी पश्चिम बंगाल में चुनाव है, और सीताराम येचुरी उसे चुनाव प्रचार के लिए बंगाल में बुलाना चाहते हैं. भाषण देना तो सीख ही गया है. भावी नेता बनने की योग्यता तो रखता ही है. यह बात अलग है कि उसकी विचारधारा वामपंथी है उससे आज ज्यादा लोग इत्तेफाक नहीं रखते. पर भाजपा के छुटभैये नेता अभी भी कन्हैया की जीभ और जान की कीमत तय करने लगे हैं. यह भाजपा के लिए अगर कहा जाय तो मोदी जी जिन गड्ढों को खोदने और भरने की बात करते हैं कहीं उनके रास्ते के गड्ढों में न परिवर्तित हो जाय. अब दिल्ली पुलिस जिसको वकीलों से पिटती देखती रही अब सुरक्षा देने की बात कर रही है.

मेरा अपना मत है कि मोदी जी को अपने घर को साफ़ सुथरा रखना होगा, अपने नेताओं के बयानों पर लगाम कसनी होगी और जिस विकास के मुद्दे पर चुनकर आये हैं उसे ही भरपूर कोशिश के साथ आगे बढ़ाना होगा. वैसे ही महंगाई पर काबू न रख पाने और इ पी एफ की निकासी पर ब्याज लगाने के बजट प्रस्ताव पर वेतनभोगी वर्ग से नाराजगी झेल रहे हैं. रोजगार पैदा करने और निवेश बढ़ाने पर अभी बहुत काम बाकी है. पांच राज्यों में चुनाव कार्यक्रम की घोषणा हो गई है. इन राज्यों में चुनाव परिणाम बताएगा कि मोदी जी की लोकप्रियता बरक़रार है या उसमे कमी हुई है. वैसे दिल्ली और बिहार में उनकी पराजय आइना दिखलाने के लिए काफी है.      

कुछ चाटुकार हर जगह होते हैं. भक्त भी अपने हित की ही मांग भगवान से करता है. अपनी बड़ाई सबको अच्छी लगती है. बहुत कम लोग होते हैं, जो अपनी सफलता का श्रेय दूसरों को देना चाहते हैं. पर देश और मानव हित सर्वोपरि है, इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती. अज पूरा विश्व एक ‘ग्लोबल विलेज’ के रूप में जाना जाने लगा है. सूचनाएं द्रुत गति से संचारित हो रही हैं. सोच बदलनी होगी. अपनी भी और दूसरों की भी. सलाह–मशविरा वार्तलाप करने में आप माहिर हैं. नौजवान आपको बड़ी उम्मीद भरी नजरों से देख रहा है. उसे निराश या पथभ्रष्ट होने से बचा लीजिये. आपसे एक आम आदमी का निवेदन है, प्रधान मंत्री श्री मोदी जी. जय हिन्द!

  • जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर.

4 thoughts on “किसने बनाया केजरी और कन्हैया को हीरो

  • विजय कुमार सिंघल

    आपने अच्छा लिखने की कोशिश की है। लेकिन यह बात सही नहीं है कि कन्हैया को भाजपा ने हीरो बनाया है। वास्तव में भारत की मीडिया पर वामपंथियों का वर्चस्व है, इसलिए वे ऐसे हर किसी को हीरो बनाने की कोशिश करते हैं जो भाजपा और मोदी जी का विरोधी हो। भाजपा में भी कुछ मूर्ख लोग हैं पर उनकी संख्या नगण्य है।

    • जवाहर लाल सिंह

      लिखने की ही कोशिश करता हूँ आदरणीय सिंघल साहब. बाकी काम तो लोग कर ही रहे हैं. वामपंथियों का मीडिया पर कब्ज़ा है तो वे देश पर भी कब्ज़ा कर लेते. मीडिया तो जिस न्यूज़ में अपना टी आर पी देखता है आगे बढ़ता है. बिजनेस तो वह भी कर रहा है. बिना विज्ञापन का कोई भी खबर है? और विज्ञापन किनके नहीं है? सादर!

  • लीला तिवानी

    प्रिय ब्लॉगर जवाहर भाई जी, आपने बिलकुल दुरुस्त फरमाया है, कि मोदी जी को अपने घर को साफ-सुथरा रखना होगा. हम तो यह भी कहेंगे, कि मोदी जी को ही क्यों, हम सबको ही अपने घर को और उससे भी सधिक अपने मन को साफ-सुथरा रखना होगा.

    • जवाहर लाल सिंह

      आपने सही फ़रमाया है आदरणीया लीला तिवानी जी . बदलाव की सख्त जरूरत है अन्दर से भी बाहर से भी!

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