ग़ज़ल : अरमान पैदा कर
कभी ख़्वाबों- खयालों में कोई अरमान पैदा कर
कभी जो डिग नहीं सकता है वो ईमान पैदा कर |
कोई ठहरा हुआ दरिया नहीं है जिन्दगी तेरी
लहर का चीर दे सीना तू वो तूफ़ान पैदा कर
भटकता है कभी मंदिर कभी मस्जिद अरे बन्दे
जरा सा झाँक कर खुद में ही तू भगवान पैदा कर
करे सज़दा जहां सारा, कि उसमे बात हो ऐसी
ख्याल ए यार से बेहतर कोई मेहमान पैदा कर
रहे अम्नो- अमां से जो मिटा कर नफरतें दिल की
अगर तू कर सके तो आज वो इंसान पैदा कर
तुम्हारी शान में ये चाँद सूरज भी करे सजदा
जरा तू हौसलों में आज फिर वो जान पैदा कर
झुका देंगे निगाहें जो उठेगी जानिबे गुलशन
वतन के वास्ते जीने का भी अभिमान पैदा कर
वतन के वास्ते जीना सभी का धर्म बन जाये
खुदा सबके दिलों में एक हिन्दुस्तान पैदा कर
— रमा प्रवीर वर्मा
सुन्दर ग़ज़ल !