ग़ज़ल : कही बात से हम मुकरते नहीं हैं
कही बात से हम मुकरते नहीं हैं
कभी कर्म करने से डरते नहीं हैं
पड़ें स्वार्थ में और मतलब की खातिर
दगा हम किसी से भी करते नहीं हैं
चलें झूठ की राह पर जो सदा ही
कभी भाग्य उनके सँवरते नहीं हैं
बुजुर्गों का करते हैं जो मान दिल से
वो जीवन में ऐसे बिखरते नहीं हैं
बड़ाई के भूखे दिखावे में पड़कर
गरजते हैं लेकिन बरसते नहीं हैं
जिन्हें कर्म पर है भरोसा कभी वो
यहाँ जिंदगी में पिछड़ते नहीं हैं
— रमा प्रवीर वर्मा
उत्तम ग़ज़ल !
बढ़िया