ग़ज़ल
औरत हूँ लाचार नही हूँ
इंसा हूँ बाजार नही हूँ ।
दुर्गा काली चण्डी ज्वाला
सिर्फ गले का हार नही हूँ ।
कद्र मिरी तुम करना सीखो
मैं बासी अखबार नही हूँ ।
सच के साथ खड़ी हूँ हरदम
दो धारी तलवार नही हूँ ।
जब जी चाहे मुझको बेचो
कोठी खेती कार नही हूँ ।
धरती पर मुझको आने दो
पापा सर का भार नही हूँ ।
— धर्म पाण्डेय
बहुत शानदार ग़ज़ल !