ओवैसी-सुनो! हमारे लिए यह मातृभूमि सदा से वंदनीय है और रहेगी
अपने बयानों से चर्चा में रहने वाले ओवैसी ने नया बयान जारी किया है कि मेरी गर्दन पर चाकू रख देंगे तब भी वह भारत माता की जय का नारा नहीं बोलूंगा। सत्य यह है कि कोई भी गंभीर राजनेता ऐसे अनाप शनाप बयान नहीं देगा। जिनके पास कोई जनहित संकल्प, कोई समाज सेवा करने का विचार नहीं होता वही फालतू आदमी केवल ध्यान खींचने के लिए ऐसे अनाप शनाप बयान देता है।
“भारत माता की जय” का उद्घोष अपनी मातृभूमि के प्रति मनुष्य के हृदय में अनुपम प्रेम, ममता, अपनत्व आदि उच्च विचारों को अंकुरित करता है। जिस प्रकार से जन्म देने वाली माता से शिशु का शरीर उत्पन्न होता है। उसी प्रकार से जन्मभूमि में उत्पन्न दूध, अन्न, फल आदि ग्रहण कर हम सभी बड़े होते हैं। अपने जीवन में सामर्थ्य और उन्नति को धारण करते हैं। इसीलिए जैसा प्रेम हमें जन्म देने वाली जननी से होता है वैसा ही प्रेम हमें अपनी जन्मभूमि से होता है। इसीलिए इस महान जन्मभूमि के लिए हम अपना जीवन हँसते-हँसते बलिदान कर देते हैं। यदि कोई अपनी माँ का पालन-पोषण करने में असमर्थ हो, तो उसकी माँ अपमानित निर्धन जीवन व्यतीत करती है। उसी प्रकार से यदि किसी की जन्मभूमि परतंत्र हो तो उस देश के नागरिक सिर ऊँचा करके संसार में नहीं चल सकते।
इतिहास की एक प्रेरणादायक घटना से हम भारत भूमि की महता पर प्रकाश डालना चाहते है। घटना अंग्रेजों के राज के समय की है। गुरुकुल कांगड़ी में शिक्षक के रूप में कार्य करते हुए पंडित सातवलेकर जी द्वारा अथर्ववेद का बारहवें कांड जो “पृथ्वी सूक्त” के नाम से प्रसिद्ध है का भाष्य प्रकाशित किया गया। स्वाधीनता एवं मातृभूमि की वंदना के सन्देश से सुसज्जित इस सूक्त के भाष्य में अंग्रेज सरकार को देशद्रोह की झलक दिखी। उन्होंने सातवलेकर जी को जेल भेजकर अपनी दमन नीति का परिचय दिया। विडंबना देखिये जिस भारत माता की वंदना के लिए पंडित जी जेल जाते है, उसी भूमि में जन्म लेने वाला ओवैसी भारत माता की जय बोलने में शर्म महसूस करता है। इसे मज़हबी सोच की संकीर्णता कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी। अगर मरना भी है तो इस धरती की रक्षा के लिए प्राण दो।भारत माँ की प्रतिष्ठा एवं सम्मान के लिए प्राण दो। जैसा हमारे महान पूर्वज सदा से करते आये हैं। हमारे देश के राष्ट्रभक्त मुसलमान जैसे अशफ़ाक़ुल्लाह खान, अब्दुल हमीद, अब्दुल कलाम जैसों महान व्यक्तियों के लिए भी मातृभूमि सदा वंदनीय थी। यह देश मज़हबी संकीर्णता से नहीं अपितु देशभक्तों के त्याग और तप से महान बना है।
अथर्ववेद 12:10 मंत्र का सन्देश की हमारी मातृभूमि हम पुत्रों के पालन-पोषण के लिए हमें ओज-तेज, वीरता आदि प्रदान करती रहे। ऐसी मातृभूमि वंदननीय, सम्माननीय, रक्षणनीय, आभरनीय, आदरणीय एवं श्रेष्ठ है।
— डॉ विवेक आर्य