ग़ज़ल
सुना दिल की बातें कहने लगा वो
के अब तो बहानो में जीने लगा वो
बड़ी मुद्दतों से था कैद में पंछी के
अब तो हवाओं में उड़ने लगा वो
संभल जाएगा दिल जरा तो संभालो
के धड़कन को अपनी छूने लगा वो
ठहरा था उसके समन्दर का पानी
के लहरों से मिलकर बहने लगा वो
कभी तिश्नगी में भटका था साया
के बूंदों संग अब बरसने लगा वो
खोकर के कैसी पाई है हस्ती
के खुद से मिलकर हँसने लगा वो
बदल जाएगा ये समा भी “मुस्कान”
के किस्मत से अपनी लड़ने लगा वो
— निर्मला “मुस्कान”
सुन्दर ग़ज़ल !
अच्छी गज़ल