क्षणिका

क्षणिकाएं

1
तुम्हारे इश्क़ में
मैंने कई
रस्मों ,रिवाज
तोड़े हैं
एक तुम
हो के
बाँधना
चाहते हो
फिर से मुझे
उन्हीं ज़ंजीरों में

2

मुहब्बत को
ख़ामोश ही
रहने दो
उसे ज़ुबान
ना दो
लफ़्ज़ों मैं
वो कशिश
नहीं होती

3

रात आज भी होती है
पर अब ख़ामोश सी रहती है ,
तुझ से मुलाक़ातों मैं तो
बहुत बदहवास रहती थी ।

4
अलफाजों से बहुत डर लगता है
मुलाक़ातों में
ज़रा ख़ामोशी की चादर डाल दो
इन बेबाक़ लमहों में

5

ज़िन्दगी
वो ज़िन्दगी भर
उलझती रही
ज़िन्दगी से
पेट भर
खाने के लिए
–मीनाक्षी भालेराव

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