घोड़े का श्राप !
किसी समय में घोड़े और गधों में कोई बहुत अंतर नहीं था सिवाय रंग के! गधे सदियों ही से सफेदपोश होते हैं मेरा मतलब सपेद रंग के होते हैं और घोड़े काले, भूरे,सूरज की धूप में मेहनत करके पसीने की बूंदें उनकी चमड़ी को काला कर देती हैं ।
एक अस्तबल में गधे और घोड़े साथ साथ ही रहते थे बस घोड़ों की काठी थोड़ी ऊँची थी इस बजह से गधों को घोड़ों से बहुत जलन होती थी और इतना ही नहीं अक्सर ही घोड़े गधों से बाजी मार ले जाते थे और गधे खिसिया कर रह जाते । घोड़े हमेशा ही उसूलों के पक्के होते और गधे हमेशा ही शॉर्टकट की तलाश में रहते ।
घोड़े का मालिक जब शान से घोड़े की सवारी करता तो गधे से बर्दाश्त नहीं होता और एक दिन उसने अपने मालिक के कान भरने शुरू कर दिए कि घोड़ों को बहुत घमण्ड है खुद पर और अपने सवार पर भी और वे कह रहे थे कि तेरा तो सवार ही अनाड़ी है इसीलिए गधे हमेशा रेस में हार जाते हैं इतना सुनना था कि गधे के मालिक ने आव देखा न ताव और घोड़े की टांग तोड़ दी ।
निरीह घोड़ा कुछ कह न सका लेकिन उसने मन ही मन गधों को श्राप दिया____ कि गधे कभी घोड़ों की बराबरी नहीं कर पाएँगे । उनकी बुद्धि पर पत्थर पड़े रहेंगे और उन्हें समझ में नहीं आएगा कि क्या करें और क्या न करें । इसीलिए दुनिया उन पर थूकेगी । वे कोई काम ठंग से नहीं कर पाएंगे। अगर किस्मत की वजह से उन्हें कोई पदवी मिल भी गयी तो वे उसे नाहक ही अपनी मूर्खता के चलते गवायेंगे और सजा भुगतेंगे ।
लोग उनकी भोली सूरत और सफेद चमड़ी से प्रभावित तो होंगे लेकिन उनकी मूर्खता और अड़ियलपन की बजह से उन्हें कभी भी घोड़ों की बराबरी का स्थान नहीं देंगे ।
और तब से आज का दिन है कि घोड़ों का श्राप गधों पर बिल्कुल कारगर है ।छल, बल, ,साम ,दाम, दंड ,भेद, सभी नीतियां गधों की असफल हैं। क्योंकि उन्हें श्राप लगा है घोड़ों का ! इसीलिए वे जिस मिट्टी में पनपते और खाते हैं उसी का ही गुणगान करनें से परहेज करते हैं । कुछ तो इतने अड़ियल और मूर्ख हैं कि अपने भविष्य से भी खिलवाड़ करने से नहीं चूकते और हिन्दुस्तान मुर्दावाद तक के नारे लगाते हैं और घोड़ों पर विवादित बयान देकर अखवारों के पहले पन्ने की खबर बन जाते हैं ।और कुछ इनसे भी आगे हैं ।
अय्याशी और अड़ियलपन के चलते तब तक दारू उढ़ाते हैं जब तक कि चड्डी बनियान तक न उतर जाये और जब घोड़ों की दुलत्ती पड़ती है तो विदेश तक नंगे ही भाग जाते हैं ।
घोड़ों को तो टांग तुड़वाने के बाद भी कोई फिक्र नहीं होती क्योंकि उन्हें अपनी मेहनत पर भरोसा है और अकल पर भी लेकिन गधों का तो भगवान ही मालिक है हे राम ।
करारा व्यंग्य !
आदरणीय अंशु प्रधान जी आप ने अच्छा व्यंग्य किया है. बधाई आप को .
अच्छा व्यंग्य!!
अच्छा व्यंग्य!!