समाजवादी सरकार के चार साल : दावे, लेकिन कितना पानी
मार्च 2012 में सत्ता में धूमधड़ाके साथ बहुमत में आयी समाजवादी सरकार ने अब अपने चार साल पूरे कर लिये हैं। समाजवादी नेता मुलायम सिंह यादव ने अपनी वंशवादी परम्परा को कायम रखते हुए अपने युवा, सशक्त और ऊर्जावान बेटे अखिलेश यादव को प्रदेश की कमान सौंपी थी। उस समय आम जनमानस में अखिलेश को लेकर कई प्रकार की बातें चल रही थीं, लेकिन अब वही वटवृक्ष आगे की ओर बढ़ रहा है। समाजवादी सरकार ने अपने चार साल के विकास कार्यक्रमों को काफी तेजी से लागू करने का एक ईमानदार प्रयास किया तो हैं लेकिन उनके यह प्रयास क्या आगामी विधानसभा चुनावों में उनकी नैया को फिर से पार लगा पायेंगे? यह एक बड़ा प्रश्न एक बार फिर से प्रदेश के राजनैतिक गलियारों में गूंजने लगा है। उधर समाजवादी सरकार के चार साल पूरे होने पर जहां सरकार व पार्टी संगठन सरकार के कामकाज को जनता तक पहुंचाने के लिए समाजवादी विकास दिवस समारोहों का आयोजन प्रदेश भर में किया जा रहा है वहीं एक चुनावी सर्वे ने समाजवादियों के माथे पर बल ला दिया है। एबीपी न्यूज के सर्वे में आगामी चुनावों मेें बसपा की सत्ता में वापसी के संकेत मिल रहे हैं तथा भारतीय जनता पार्टी दूसरे सबसे बड़े दल के रूप में सामने आ रही है। वहीं समाजवादी पार्टी के 80 के आसपास सिमट कर रह जाने की संभावना बन रही है। वैसे भी आजकल आम जनता के बीच सरकार की जो छवि बन रही है उसके कारण आागमी चुनावों में सपा को आघात लग सकता है, जिसके कारण सपा मुखिया मुलायम सिंह व सरकारी महकमा सतर्क हो गया है।
समाजवादी पार्टी की सरकार ने काम तो खूब किया है। लखनऊ में मेट्रो रेल के निर्माण में तेजी से काम हो रहा है। अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट स्टेडियम लगभग बनकर तैयार हो गया है। युवाओं को आकर्षित करने के लिए लैपटाप वितरण का काम किया लेकिन हाईस्कूल पास करने वाले छात्रों को टैबलेट वितरण का काम अधूरा ही रह गया। वहीं दूसरी ओर बेरोजगारी भत्ता पहले शुरू तो कर दिया गया, लेकिन बाद में बेरोजगारी भत्ते के लिये जो मारामारी देखी गयी उसके कारण सरकार को वापस लेना पड़ा था जिससे सरकार की साख में कुछ सीमा तक गिरावट भी दर्ज ्रकी गयी थी। चार साल पहले माना जा रहा था कि समाजवादी मुखिया मुलायम सिंह यादव ने केंद्र्रीय राजनीति करने और किसी प्रकार से स्वयं प्रधानमंत्री बनने के लिये अखिलेश को प्रदेश की कमान सौंपी थी लेकिन 2014 में मोदी लहर ने उनके सपने को तहस-नहस कर दिया। अब फिलहाल सपा मुखिया मुलायम सिंह के प्रधानमंत्री बनने की संभावना तो समाप्त हो ही चुकी है और यदि 2017 में सपा की पराजय हो गयी तो फिर यादवों की राजनीति काफी लम्बे समय तक समाप्त हो जायेगी। लेकिन लोकसभा चुनावों में पराजय के बाद हालात कुछ सीमा तक हालात बदले और दबंगई तथा हनक के बल पर पंचायत चुनावों से लेकर विधानपरिषद के चुनावों तक विजय की एक नयी परिभाषा भी लिख डाली।
प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के नेतृत्व में कई विभागों ने सराहनीय प्रगति की है वहीं दूसरी ओर कुछ मामले आगे बढ़ते-बढ़ते बीच में ही हांफने लग गये। जिसमें प्रदेश का शिक्षा विभाग व स्वास्थ्य विभाग अग्रणी भूमिका निभा रहा है। समाजवादी सरकार ने लगातार दो साल तक युवा और किसान पर आधारित बजट पेश किया और किसानों तथा युवाओं के लिये कई योजनायें पेश की। लेकिन प्रदेश का किसान तमाम योजनाओें के बाद भी बदहाल हालात के दौर से गुजर रहा हैं एक तो मौसम की मार किसानों को पड़ रही हैं वहीं सरकार अधिकारियों की लापरवाही से अलग किसान परेशान हो रहा है। प्रदेश के मुख्यमंत्री और मंत्री रोज-रोज केवल केंद्र सरकार से सहायता ओर अतिरिक्त धन की मांग ही करते रहे लेकिन केंद्र सरकार ने उन्हें जो दिया उसकी कभी भी दिल खोलकर तारीफ भी नहीं की। केंद्र-राज्य के बीच टकराव भी होते रहे लेकिन इस बीच कुछ न कुछ सौगातें केंद्र से मिलती भी रहीं।
मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने बेहतर वित्तीय प्रबंधन एवं विभिन्न क्षेत्रों में उत्पादकता को बढ़ाने के लिए एक नयी कार्यसंस्कृति के सृजन का सराहनीय कार्य तो किया है लेकिन विभिन्न मंत्रालयों के लिए सीएजी ने जो रिपोर्ट तैयार की है, उससे एक गलत संकेत जा रहा है कि प्रदेश का कोई भी विभाग घोटालों से बचा नहीं रह गया है। हर विभाग में वित्तीय अनियमितताओं का घालमेल है। समाजवादी सरकार ने प्रभिाशाली साहित्यकारों, विचारकोें, खिलाड़ियों, व्यापारियों, अधिवक्ताओं को सम्मान भी दिया है। समाज के कल्याण के लिए समाजवादी पेंशन योजना प्रारम्भ की लेकिन उसका लाभ कितने लोगों को मिला है यह तो चुनाव परिणामों से ही मिलेगा।वहीं दूसरी ओर कन्या विद्या धन योजना प्ररम्भ से ही विवादों के घेरे में रही।
प्रदेश में बढ़ते अपराध समाजवादी सरकार के लिय सबसे बड़ी मुसीबत बन गये हैं। महिलाओं से छेड़छाड़ की घटनाओं पर लगाम लगाने व उनको सुरक्षा प्रदान करने के लिए 1090 योजना शुरू की गयी लेकिन जहां इससे छात्रायों व महिलाओं को कुछ सहायता भी मिलीं लेकिन फिर भी आज महिलायें कहीे सुरक्षित नहीं रह गयी हैं और उनके साथ घटित कई वीभत्स घटनाओं का अभी तक फालोअप तक नहीं हुआ है। जिसमेें सर्वाधिक चर्चित राजधानी लखनऊ के पास मोहनलालगंज की दर्दनाक घटना भी शामिल है। इसी प्रकार की तमाम घटनायें हुयीं जिनका पटाक्षेप नहीं हो सका है। अपराधी तत्व मस्त होकर घूम रहे हैं। समाजवादी कार्यकर्ताओं की दबंगई से भी प्रदेश की जनता हलकान रही है। पुलिस पर भी बदमाश हमले कर रहे हैं। एक प्रकार से समाजवादी सरकार में सबसे बड़ी जो कमजोरी बार-बार उजागर होती है वह है प्रदेश में हर प्रकार के अपराधों में बेतहाशा वृद्धि का होना।
दूसरी ओर समाजवादी सरकार में एक बार फिर मुजफ्फरनगर सहित कई जिलों में साम्प्रदायिक तनाव देखने को मिला। हर घटना का अनावरण समाजवादी चश्मे से किया गया। जिसके कारण प्रदेश का बहुसंख्यक समाज कुछ सीमा तक समाजवादी सरकार से दूर हट रहा है और प्रदेश की जनता को एक बार फिर तानाशाह मायावती याद आ रही हैं। यही कारण है कि आज की तारीख में बसपा नेत्री मायावती अति उत्साहित हैं और फिलहाल किसी के साथ गठबंधन करने नहीं जा रही है।
समाजवादी सरकार को सबसे बड़ा झटका न्यायपालिका की ओर से लगा। सरकार को न्यायपालिका में सबसे बड़ा झटका शिक्षामित्रों के समायोजन के मामले में लगा। वर्तमान में शिक्षामित्रों के मामले की सुनवायी सर्वोच्च न्यायालय में चल रही है। अदालतों में सरकार की नाकामी के चलते राज्य सरकार को चार साल में तीन बार महाधिवक्ता बदलने पड़ गये। ऐसा नहीं हैं समाजवादी सरकार में सारे काम खराब ही हुए हों कुछ काम अच्छे भी हुये हैं। “क्लीन यूपी-ग्रीन यूपी” के तहत एक ही दिन में 10 लाख पौधे लगाने का काम समाजवादी सरकार में संपन्न हुआ और यह गिनीज बुक आफ वल्र्ड रिकार्ड में शामिल किया गया। प्रदेश में पढ़ें बेटियां और बढ़ें बेटियां योजना भी लागू की गयी है। किसानों का विकास करने के लिये प्रदेश में जनेश्वर मिश्र्र ग्रामीण योजना, लोहिया ग्रामीण आवास योजना किसानों के लिये योजना का सफल संचालन किया जा रहा है लेकिन किसान फिर भी बदहाल ही नजर आ रहा है। बुजुर्गो को तीर्थयात्रा करवाने की पहल भी समाजवादी सरकार की ओर से गयी है जो कि जनता के बीच काफी लोकप्रिय हो रही है। समाजवादी सरकार में पर्यटन और सिनेमा जगत को बढ़ावा देने के लिए पर्याप्त उपाय किये गये हैं। सपा सरकार में पर्यटन को बढ़ावा देने के नाम पर खूब जमकर मुस्लिम तुष्टीकरण का खेल भी खेला गया है। प्रशासन के क्षेत्र में समाजवादी सरकार ने यादव-मुस्लिम का फार्मूला पूरी तरह से लागू कर दिया है।
विगत चुनाव प्रचार के दोैरान सामजवादी पार्टी ने प्रदेश की जनता से वादा किया था कि वह बसपा सरकार में बनवाये गये स्मारकों और पार्को के निर्माण में जो घोटालों और अनियमितताओं में दोषी पाया जायेगा वह जेल के अंदर होगा लेकिन आज सभी आरोपी मस्ती में घूम रहे हैं। यहां तक कि मायावती सरकार की पूर्ववर्ती सरकार में जो एनआरएचएम घोटाला हुआ था उसका मुख्य आरोपी एक बार फिर सपा सरकार में सत्ता का सुख भोगने लग गया। आज पूरा विपक्ष समाजवादी सरकार को नाकाम बता रहा है। आज पूरा विपक्ष कह रहा है कि सपा सरकार में भ्रष्टाचार, परिवारवाद, जातिवाद भ्रमित नौकरशाही अखिलेश सरकार की पूंजी बने हुये हैं। लेकिन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव अपने विकास कार्यों और अपनी व्यक्तिगत ईमानदार छवि के कारण प्रदेश में वापसी का सपना संजो रहे है लेकिन वह टेढ़ी खीर नजर आ रही है अब जनता तोे हिसाब लेगी क्योंकि जनता के पैसे से समाजवादियों ने सैफई में फिल्मी कलाकारों के सााथ खूब मस्ती की है और रामपुर में बहुत शान-शौकत से जन्मदिन भी मनाये हैं।
— मृत्युंजय दीक्षित