37वाँ अवकाश दिवस
भारतरत्न बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर के जन्मदिवस 14 अप्रैल की छुट्टी तो दशकोँ से चली आ रही है और इस दिन शासन द्वारा प्रायोजित कार्यक्रमोँ मै भाग लेने का सौभाग्य मुझे वर्षानुवर्ष प्राप्त होता रहा है, परंतु वर्ष 2015 मेँ बाबा साहेब के जन्मदिवस को देश मेँ इतनी धूमधाम से मनाया गया कि बाबा साहेब के प्रति अकस्मात उमड़े श्रद्धा के सैलाब के निहितार्थ ने मुझे तो शंकालु कर ही दिया है, मेरी समझ मेँ स्वर्गीय बाबा साहब भी सशंकित हुए बिना नहीँ रहे होंगे. प्रत्येक राजनैतिक दल मेँ अपने को बाबा साहेब का सबसे बड़ा भक्त सिद्ध करने मेँ ऐसी होड़ दिखाई दी कि इसकी निःस्वार्थता मुझ जैसे कमज़ोर हाज़मा वाले व्यक्ति को हज़म नहीँ हो रही है.
‘उत्तम प्रदेश’ के शासन मेँ बाबा साहेब के प्रति नवजागृत प्रेम जब किसी प्रकार थम नहीँ सका तो उसने बाबासाहेब के जन्मदिवस के अतिरिक्त उनके परिनिर्वाण-दिवस (ऐच्छिक हिंदी पढ़े हुए कान्वेंटियोँ के लाभार्थ बता दूँ कि इसका अर्थ ‘मरण-दिवस’ होता है) की भी छुट्टी घोषित कर दी. हमारे देश मेँ जन्मदिन को अवकाश दिवस घोषित करने और खुशी मनाने की प्राचीन परम्परा रही है. परिनिर्वाण दिवस पर 2 मिनट का मौन अवश्य रखा जाता रहा है परंतु दिन भर की छुट्टी रखकर हुड़दँगा करना अथवा सिनेमा देखना अशोभनीय आचरण माना जाता रहा है.
विगत शासन काल मेँ अवश्य तत्कालीन सम्राज्ञी (जिनको इस शब्द से आपत्ति हो, वे जनता की गाढ़ी कमाई से बने मौल एवेन्यू स्थित उनके महल पर एक दृष्टि डालने का कष्ट कर लेँ) ने जीवित रहते हुए शासकीय धन से अपनी मूर्तियाँ स्थापित करवाने और मरण-दिवस की छुट्टी घोषित करने की बहुजन-हिताय (सम्राज्ञी द्वारा यथापरिभाषित) परम्परा प्रारम्भ कर दी थी. उनकी ऐसी कारगुज़ारियोँ से जनता इतनी ‘अभिभूत’ हो गई थी कि उसने चुनाव मेँ सम्राज्ञी की खाट खड़ी कर दी.
परंतु सदियोँ से लतियायी जाने वाली जनता लातोँ की इतनी लती हो गई थी कि उनके स्थान पर एक सम्राट (जिनको इस शब्द से आपत्ति हो वे सैंफई-साम्राज्य की यात्रा कर आयेँ) को राजगद्दी पर बिठा दिया. सम्राट और विगत सम्राज्ञी मेँ 36 का आंकड़ा चल रहा था. यहाँ तक कि सम्राज्ञी अपनी हत्या कराये जाने के प्रयास का आरोप भी लगा चुकी थी.
अतः जनता को स्वाभाविक अपेक्षा थी कि अब उच्च जातियोँ को जुतियाने (तिलक, तराजू और तलवार, इनको मारो जूते तार), गांधी जी के पितृत्व पर शंका उठाने (गांधी जी शैतान की औलाद थे), जगह-जगह स्वमूर्ति स्थापित करवाने तथा मरण-दिवस पर सरकारी छुट्टी घोषित करने जैसी मुँह का ज़ायका खराब करने वाली परम्पराओँ को नहीँ झेलना पड़ेगा. अतः बाबा साहेब के ‘परिनिर्वाण-दिवस’ को अवकाश-दिवस घोषित किये जाने का समाचार पढ़कर उन महाप्रमादी शासकीय कर्मियोँ के कान भी अचम्भित होकर खड़े हो गये, जो कार्यालय मेँ अनवरत चाय-पान करने, अपनी पान-लसित पीक द्वारा भित्ति-चित्रांकन करने, एवँ बीच-बीच मेँ सोकर अपनी उग्र नासिका से गर्दभ-नाद निकालने के अतिरिक्त कोई अन्य कार्य नहीँ करते हैं.
इस घोषणा का एक निर्विवाद परिणाम यह भी हुआ कि अगले दिन कर्मचारियोँ को कार्यालय मेँ अघोषित छुट्टी रखने एवँ अनवरत गप लड़ाने हेतु किसी मसाला (यथा क्रिकेट मैच, चुनाव-परिणाम, चलती बस मेँ बलात्कार, मोदी की विदेश-यात्रा, आदि) को ढूँढने का कष्ट नहीँ करना पड़ा. दिन भर बाबा साहेब के परिनिर्वाण-दिवस को अवकाश-दिवस घोषित करने के कारणोँ, उद्देश्योँ, निहितार्थोँ एवँ लाभ-हानियोँ पर रसमय चर्चा होती रही.
उस चर्चा का कोई सर्वमान्य निश्कर्ष तो नहीँ निकल पाया, परंतु अनेक कयास लगाये जाते रहे. कतिपय कयास इतने वज़नदार थे कि कार्यालयोँ मेँ उन पर सप्ताह भर चर्चा चालू रह सकती है. इनमेँ कुछ के नमूने देखिये-
• यह छुट्टी सम्राज्ञी के वोट-बैंक मेँ सेंधमारी का हथकंडा मात्र है.
• यह एक ऐसी चाल है जिसमेँ ‘आम के आम, गुठलियोँ के दाम’ हैँ – जिसके नाम पर छुट्टी घोषित हुई, उनका वर्ग भी खुश और सरकारी कर्मचारी भी खुश. प्रत्येक धर्म और जाति के त्योहारोँ, उनके पीरोँ-फक़ीरोँ के जन्म-मरण दिवसोँ, सामाजिक एवँ राजनैतिक नेताओँ की जन्म एवँ पुण्य-तिथियोँ आदि पर किसी वर्ग को खुश करने के लिये अवकाश घोषित कर देने मेँ हर्ज़ ही क्या है? इससे कोई न कोई संगठित वोट-बैंक खुश होता है; बस जनसाधारण के काम रुक जाते हैँ – तो भाई साधारण जन को इस देश मेँ पैदा होने को कहा ही किसने है, और अब अगर ‘इंडिया दैट इज़ भारत’ मेँ कोई घसखुदवा बनकर पैदा हुआ है, तो उसे घसखुदवा की भांति रहना ही चाहिये.
• कुछ उपजाऊ मस्तिष्कोँ ने तीसरा कयास यह लगाया कि उत्तर प्रदेश मेँ अभी तक केवल 36 अवकाश-दिवस (प्रतिबंधित अवकाश एवँ शनिवार-रविवार के 136 अवकाशोँ को छोड़कर) थे और चूंकि नेता जी को 36 के आंकड़े से विशेष एलर्जी है, अतः उन्होँने बिना कोई मांग उठे 37वाँ अवकाश-दिवस घोषित करवा दिया है.
मुझे इन तीनोँ कयासोँ मेँ तृतीय अधिक जम रहा था कयोँकि मैंने नेता जी को अनेक बार अपने भाषणोँ मेँ ’36 का आंकड़ा होने’ का मुहावरा प्रयोग करते सुना था, परंतु तभी आगे समाचार पढ़ने को मिला कि स्व. चंद्रशेखर जी के जन्म-दिवस (17 अप्रैल) को भी अवकाश-दिवस घोषित कर दिया गया है, जिससे वर्तमान शासन द्वारा नवघोषित अवकाश-दिवस पूर्व शासन द्वारा नवघोषित अवकाश-दिवसोँ से अधिक हो गये हैँ.
यह पढ़कर मै समझ गया कि उपर्युक्त मेँ से कोई कयास सही नहीँ है – सही है तो बस यह कि सरकारी समय (और सरकारी धन भी) को बेमुरौव्वती से उलीचने मेँ सम्राट और सम्राज्ञी मेँ जुनूनी प्रतिस्पर्धा है. दोनोँ मेँ कोई हारने को तैयार नहीँ है. मेरा कयास है कि यदि यह प्रतिस्पर्धा यूँ ही बनी रही तो शासन को शीघ्र ही वर्ष के दिन 365 से ऊपर बढ़ाने पड़ेँगे. आश्चर्य नहीँ होगा यदि इस हेतु सम्राट (अथवा कालांतर मेँ सम्राज्ञी) पृथ्वी को अपनी धुरी पर और द्रुत गति से चक्कर लगाने को आदेशित कर दे.
— महेश चंद्र द्विवेदी
बेहतर व्यंग्य !
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