गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

अब मिटें बीच के फासले कम से कम
हों शुरू प्यार के सिलसिले कम से कम

दिल में थी बात जो तुम वो कहते हमें
फिर न रहते कोई भी गिले कम से कम

जान भी आपके नाम कर जाते पर
नज्र से प्यार की देखते कम से कम

उँगलियाँ जो उठाते सभी पर उन्हें
कोई दिखला भी दो आईने कम से कम

जिन्दगी का सफर यूँ न खलता हमें
मिल ही जाते अगर काफिले कम से कम

हक दिया होता गर प्यार में हमको तो
हम मिटाते सभी उलझने कम से कम

टूट जाते कहीं राह में हारकर
शुक्र है मिल गए रास्ते कम से कम

उनको रहता “रमा” गर जरा भी यकीं
बीच रहती नहीं रंजिशें कम से कम

रमा प्रवीर वर्मा …..

रमा वर्मा

श्रीमती रमा वर्मा श्री प्रवीर वर्मा प्लाट नं. 13, आशीर्वाद नगर हुड्केश्वर रोड , रेखानील काम्प्लेक्स के पास नागपुर - 24 (महाराष्ट्र) दूरभाष – ७६२०७५२६०३

One thought on “ग़ज़ल

  • विजय कुमार सिंघल

    वाह वाह ! बहुत खूब !!

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