घोड़े पर दया, तो गाय, भेड़, बकरी व मुर्गे पर दया क्यों नहीं?
देहरादून में एक राजनैतिक दल के प्रदर्शन के दौरान एक राजनीतिक नेता द्वारा घोड़े पर लाठी के प्रहार से उसे घायल करने के समाचार पर इन दिनों जोर शोर से चर्चा हो रही है। इस घटना की मीडिया में भी खूब चर्चा हो रही है और ऐसा लग रहा है कि सारा देश घोड़े के प्रति हिंसा से त्रस्त है। यह उचित भी है। इस घटना के प्रभाव से हमारे मन में विचार आ रहा है कि घोड़े की तो टांग ही टूटी है परन्तु हमारे देश में प्रतिदिन गाय, भैंस, बकरी, भेड़, मुर्गा व मुर्गी और न जाने कितने ही प्राणियों के प्रतिदिन गले काटकर उनकी हत्या की जाती है। इन मूक प्राणियों के प्रति देश व मीडिया की किंचित भी हमदर्दी कभी दृष्टिगोचर नहीं होती। यह भी देखा गया है कि यदि केाई गोमांस भक्षण का विरोध करता है तो अनेक बुद्धिजीवियों और राजनैतिक दलों द्वारा नाना प्रकार से गोमांस भक्षण और गो आदि प्राणियों को पीड़ा पहुंचाने वालों का समर्थन और इस प्राणि हत्या का विरोध करने वालों को बुरा भला कहा जाता है व उन्हें पानी पी पी कर कोसा जाते है।
हमें यह समाज के दोहरे मापदण्ड लगते हैं। किसी भी निर्दोष प्राणी की हत्या करना मनुष्य हत्या के ही समान है वा होना चाहिये। परन्तु कौन किससे क्या कहे। वेदों जो कि ईश्वरीय ज्ञान है, वह भी निर्दोष प्राणियों की हत्या को मनुष्यों की हत्या के ही समान मानता है, ऐसा हमारा अध्ययन है। इससे पशु व प्राणि प्रेमियों को जो दुःख होता है उसकी देश में किसी को चिन्ता नहीं है। महर्षि दयानन्द ने शायद सबसे पहले पशुओं की वकालत की थी और गोहत्या सहित सभी प्रकार के पशुओं की हिंसा बन्द करने की माग की थी। हमें लगता है कि समाज में दोहरे मापदण्ड बन्द होने चाहिये। यदि किसी एक पशु पर लाठी आदि का प्रहार गलत है तो हजारों पशुओं की भोजन व मांस के निर्यात के लिए हत्या करना भी नैतिकता की दृष्टि से उतना ही बड़ा अपितु उससे भी बड़ा अपराध है।
हम समाज के तथाकथित बुद्धि जीवियों से दोहरे मापदण्ड छोड़ कर एक समान विचार रखने की अपेक्षा करते हैं। पशुओं अर्थात् सभी प्रकार के प्राणियों पर दया करना मानव धर्म है एवं दया न करना व उनके प्रति हिंसा करना व हत्या करना धर्म नहीं अधर्म है। हम आशा करते हैं कि बुद्धिजीवी इस पर विचार करेंगे और अपने आचरण में सुधार लायेंगे।
– विवेक आर्य
अच्छा लेख !