कविता

अबकी होली

अबकी होली वृज में
खेलूँगी तेरे संग कान्हा
तु बजाना वंशी
मै दौडी चली आऊँगी
यमुना किनारे कान्हा
अपने तो आऊँगी संग
सखियो को भी लाऊँगी
सब हिलमिल के
रंग गुलाल उडाऊँगी
रंग दे तु अपने रंग में
बना ले तु अपना कान्हा
आया फाल्गुन ले बहार
अब रास तुम रसाओ कान्हा|
निवेदिता चतुर्वेदी

निवेदिता चतुर्वेदी

बी.एसी. शौक ---- लेखन पता --चेनारी ,सासाराम ,रोहतास ,बिहार , ८२११०४