छुक छुक रेल चलायें
आओ बच्चे तुम्हे खेलायें
छुक छुक रेल चलायें
कोई बने ईंजन तो
कोई बने डब्बे
एक दुसरे के पिछे लग कर
आगे आगे रेल भगायें
जैसे जैसे उतरे यात्री
पिछे से डब्बे कटते जायें
ऐसे में ही खत्म हुये यात्री
सभी बच्चे गये अपने घर
रेल का चलना हुआ बन्द|
निवेदिता चतुर्वेदी
इस कविता में सुधार की आवश्यकता है.