ब्रह्मानंद, कृष्ण !
तुम नहीं आओगे हाँ ! तुम नहीं आओगे
अभी इन्तजार लंबा है , निरंतर
तुम खुद को ही झुठलाओगे
हाँ तुम नहीं आओगे
तुम नहीं आओगे
सदानंद,
कृष्ण ।
दुःख से परे सुख से परे अगण्य
शीत से परे तम से परे नगण्य
विस्तार में हो सम्पूर्ण लय
हाँ तुम नहीं आओगे
तुम नहीं आओगे
परमानन्द
कृष्ण ।
मृत्य से परे जीवन से परे सर्वज्ञ
कालातीत, कर्मयोगी सकल विज्ञ
तुम अश्रु नहीं बहाओगे ,क्यों ?
तुम ईश्वर कहलाओगे
तुम नहीं आओगे
चिदानंद
कृष्ण ।
तुम नहीं बच पाओगे हाँ नहीं!
सम्पूर्ण धरा राधा बन धाये
तुम ही तुम को बस ध्याये
नहीं तुम तनिक लजाये
तुम नहीं आओगे
ब्रह्म्मानंद
कृष्ण ।
पात पात से पूछा था? याद करो !
मानव दुःख वही! नहीं दूजा
याद करो ,याद करो ,चैतन्य !
विस्मृत हो ?क्यों ! कैसे!
कब तक सह पाओगे
नित्यानंद
कृष्ण ।
दूर क्षितिज से देख रहे हो मौन
मंगलबेला बन कब दर्शाओगे ?
माना हम घृणित !बही हैं ,
सुख के ग्राही! सही है ।
कब तक तरसाओगे
हृदयानन्द
कृष्ण ।
निर्लिप्त ,अनादि, अनंत ,अगोचर हो तुम
प्रेम, पीर ,वन ,उपवन ,घन में तुम
सघन ,सनातन ,सन्मुख तुम
तुम ही हो ,अधीर !न रह पाओगे
तुम आओगे
ब्रह्म्मानंद
कृष्ण ।
तुम आओगे ………….
…………………………………………………….अंशु (एक कविता,मन की बात )