कविता

“शायद वह जा रही है”

“शायद वह जा रही है”

शायद वह जा रही थी॥
मुड़ मुड़ कर
उसका देखना
ठिठक कर रुकना
फिर पैरों पर चलना
किसे दिखा रही थी
शायद वह जा रही थी॥
बंद दरवाजे को
खोलना उसका
कुछ बोलना उसका
उसको सुने बिना ही
पग आगे बढ़ा रही थी
शायद वह जा रही थी॥
काँटों से दूर
चाहत से दूर
दामन में अपने
कुछ रख छुपा रही थी
शायद वह जा रही थी॥
अचानक चीख पड़ी
चुभ गया कोई
राह दर्द दे गई
निस्तेज निसहाय पैर
वापसी के कांटे
निकालेंगे काँटों से
लगा सही में जा रही थी
अपने रास्तों को बुला रही थी
शायद ही वह जा रही थी॥
महातम मिश्र

*महातम मिश्र

शीर्षक- महातम मिश्रा के मन की आवाज जन्म तारीख- नौ दिसंबर उन्नीस सौ अट्ठावन जन्म भूमी- ग्राम- भरसी, गोरखपुर, उ.प्र. हाल- अहमदाबाद में भारत सरकार में सेवारत हूँ