पुस्तक प्रेमी हमारे एक स्थानीय मित्र श्री कृष्णकान्त वैदिक जी
ओ३म्
प्रेरक प्रसंग
देहरादून में हमारे एक पुस्तक प्रेमी ऐसे मित्र हैं जिनका अपना निजी पुस्तक संग्रह देहरादून में सर्वाधिक हो सकता है। आप राजकीय सेवा में उच्च पदस्थ रहे और सम्प्रति सेवा निवृत्त हैं। सेवाकाल में ही आपने संस्कृत का अध्ययन किया और गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय, हरिद्वार से स्नात्कोत्तर की उपाधि स्वर्ण पदक सहित प्राप्त की। आप इस समय अथर्ववेद के अन्तर्गत एक विषय पर पी.एच-डी. कर रहे हैं जो कि एक वर्ष में पूरी होने की सम्भावना है। आप नियमित स्वाध्याय करते हैं और इसके साथ देहरादून के एक वैदिक न्यास से प्रकाशित मासिक पत्रिका के मुख्य सम्पादक भी हैं। आपने कम्प्यूटर पर कार्य करना सीखा हुआ है और आप हिन्दी में भी अच्छी प्रकार टंकण आदि कर लेते हैं। हिन्दी, संस्कृत व अंग्रेजी तो आप जानते ही हैं, एक मुस्लिम उर्दू शिक्षक से घर पर ही उर्दू का अध्ययन भी कर रहे हैं। सन् 2015 के ऋषि बोधोत्सव में आप हमारे साथ टंकारा गये थे। वहां आपने गुजराती पढ़ने की योग्यता प्राप्त की थी। वर्तमान में अन्य कार्यों के साथ आप देहरादून के प्रसिद्ध गुरुकुल पौंधा में ब्रह्मचारियों को अंग्रेजी पढ़ाते हैं और वहीं आचार्य डा. यज्ञवीर जी से सांख्य दर्शन भी पढ़ते हैं। गुरुकुल पौंधा आपके निवास से लगभग 20 किमी. की दूरी पर है। इस माह गुरुकुल झज्जर के वार्षिकोत्सव में भी आप गये थे। आज आपसे मिलने पर पता चला कि आप मुम्बई में आर्यसमाज सान्ताक्रूज (पश्चिम) में आयोजित ज्योतिष विषयक सम्मेलन में जाने की तैयारी भी कर रहे हैं।
इन पंक्तियों को लिखे जाने का मुख्य उद्देश्य मित्रों व पाठकों को आपका पुस्तकों के प्रति प्रेम दर्शाना है। आपके पास पद-वाक्य-प्रमाणज्ञ पंण्डित ब्रह्मदत्त जिज्ञासु जी का महर्षि दयानन्द के यजुर्वेद भाष्य पर लिखा गया विवरण ग्रन्थ का दूसरा भाग नहीं था। चर्चा करने पर हमने आपको बताया कि वह भाग हमारे पास है। आपने हमसे वह भाग लिया और अपने एक सहयोगी श्री पंकज जी के द्वारा उसकी पीडीएफ सहित 600 पृष्ठों की उस पुस्तक का ए4 आकर में प्रिंट करवाया और उसकी भव्य बाइडिंग भी करवाई। इस पर उन्होंने 2,100 रूपये व्यय किये। हम सन् 1971 में प्रकाशित इस 16 रूपये की पुस्तक, जो कभी हमने 50 रूपये की खरीदी थी, उस पर 2100 रूपये व्यय करने की घटना को उनका पुस्तक प्रेम व पुस्तकों का दीवानापन मानते हैं। हो सकता है कि आप भी हमसे सहमत हों। हम आशा करते हैं कि हमारे आर्यसमाज के बन्धु इस घटना से प्रेरणा ग्रहण कर स्वाध्याय एवं पुस्तक संग्रह की शिक्षा लेंगे। यह कहावत नहीं अपितु वास्तविकता है कि पुस्तक हमारी बौद्धिक व अन्य सभी प्रकार की उन्नति में मुख्य भूमिका निभाती हैं।
–मनमोहन कुमार आर्य
आपके द्वारा की गई प्रशंसा के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। कृपया अपने ब्लाग का लिंक मेरे इमेल पर प्रेषित करने का कष्ट करें। मेरा इमेल है – [email protected]
कृष्णकान्त वैदिक
आपके द्वारा की गई प्रशंसा के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। कृपया अपने ब्लाग का लिंक मेरे इमेल पर प्रेषित करने का कष्ट करें। मेरा इमेल है – [email protected]
कृष्णकान्त वैदिक
आदरणीय कृष्णकान्त वैदिक जी,
सुप्रभात,
आपके पुस्तक-प्रेम के बारे में पढ़कर बहुत अच्छा लगा. हम भी कुछ-कुछ इसी तरह का काम कर रहे हैं. जितने साधन-सुविधाएं उपलब्ध हैं, उनके अनुसार हम अपने पुस्तक-प्रेम की तृषा तृप्त कर रहे हैं. रिटायरमेंट के बाद भी पढ़ने-पढ़ाने, लेखन में व्यस्त हैं. आपने हमारे ब्लॉग का लिंक जानना चाहा है, इस प्रकार है-
http://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/rasleela/
आपसे मिलकर बहुत खुशी हुई. संवाद जारी रखिएगा. हमारी ई.मेल है.
[email protected]
लीला तिवानी
प्रिय मनमोहन भाई जी, इतना प्रेरक प्रसंग लिखने और उसे पढ़ने के लिए जगाने के लिए साधुवाद, जो किसी कारण रह गया था. एक सेवानिवृत्त सज्जन इतना अधिक पठन-पाठन करते हैं, यह आश्चर्यजनक भी है और प्रेरक भी. सार के रूप में यह भी बहुत अच्छी पंक्ति है- ”पुस्तक हमारी बौद्धिक व अन्य सभी प्रकार की उन्नति में मुख्य भूमिका निभाती हैं.” आपको यह जानकर अत्यंत हर्ष होगा, कि हम भी अपने ब्लॉग में ऐसी ही हस्तियों को उजागर करने की भरसक कोशिश करते हैं.
प्रिय मनमोहन भाई जी, इतना प्रेरक प्रसंग लिखने और उसे पढ़ने के लिए जगाने के लिए साधुवाद, जो किसी कारण रह गया था. एक सेवानिवृत्त सज्जन इतना अधिक पठन-पाठन करते हैं, यह आश्चर्यजनक भी है और प्रेरक भी. सार के रूप में यह भी बहुत अच्छी पंक्ति है- ”पुस्तक हमारी बौद्धिक व अन्य सभी प्रकार की उन्नति में मुख्य भूमिका निभाती हैं.” आपको यह जानकर अत्यंत हर्ष होगा, कि हम भी अपने ब्लॉग में ऐसी ही हस्तियों को उजागर करने की भरसक कोशिश करते हैं.
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