भक्ति गीत
प्रभो तुमको यादो में पाने लगा हूँ
खुद को मै खुद ही भुलाने लगा हूँ
नहीं जानता मेरी मंजिल किधर है
हर गली तेरी मूरत सजाने लगा हूँ ।।
न देखा तुझे न मंजिल पर ठहरा
न मुखड़ा दिखा मै लुभाने लगा हूँ ।।
न स्वर ही सुना न शिकवा है कोई
मगर राह तेरी गुनगुनाने लगा हूँ ।।
पुलिंदा लिए जाऊं दर है अनेको
न उठता वजन भार उठाने लगा हूँ ।।
शिफारिश न होती ढोंगी न भाता
खुशामद नही मन मिलाने लगा हूँ ।।
महातम मिश्र
बहुत सुन्दर !
सादर धन्यवाद आदरणीय विजय सर जी, हार्दिक आभार
वाहह लाजवाब सृजन के लिए बधाई आदरणीय
सादर धन्यवाद आदरणीय, हार्दिक आभार, रचना को आप का आशीष मिला