उत्सव
हमारे हृदय का प्रेम ही
इन पाँखुरियों में बसता है
मधु बनकर छलकता अंदर
सुगंध बनकर महकता है…
कहीं सरसों की स्वर्णिम आभा
कहीं गेहूं की बालियां
कहीं बौर से लदे आम्र वृक्ष
तो कहीं चुनरियाँ धानियां
प्रकृति की इस छटा से ही
जीवन में श्रृंगार उतरता है
हमारे हृदय का प्रेम ही……
गुन-गुन करते भँवरे
जब फूलों पर मंडराते हैं
रंग-बिरंगी तितलियों की
संग बारात भी ले आते हैं
डाल-डाल टेसू हैं खिलते
ऋतुराज उतरता है
हमारे हृदय का प्रेम ही……
प्रेम की इस क्यारी में
हृदय-पुष्प जब खिलते हैं
कभी महकते, कभी छलकते
कविता का रूप धरते हैं
उत्सव के इस मौसम में
मन-आँगन महकता है
हमारे हृदय का प्रेम ही……
प्रिय सखी मीना जी, अति सुंदर.
प्रिय सखी मीना जी, अति सुंदर.