ग़ज़ल
रस्मे उल्फ़त है इसे प्यार न समझा जाए ।
मेरे इनकार को इकरार न समझा जाए ।
आँख से आँख मिलाई, है खता उनकी भी
सिर्फ मुझको ही गुनहगार न समझा जाए ।
चन्द सिक्कों में जो ईमान का सौदा कर लें
उनको इस मुल्क का सरदार न समझा जाए।
एक चिंगारी जला देती है बस्ती कितनी
जर्रे जर्रे को भी बेकार न समझा जाए।
चन्द लोगों ने वतन पर है लगा दी कालिख
मुस्लसल कौम को गद्दार न समझा जाए ।
— धर्म पाण्डेय