कविता

कविता : कस्तूरी

जख्म सींचते सींचते दर्द हुआ बेअसर
आह के संगीत से ही उठी आनंद लहर
क्षणिक राहतो ने दिया जब
कल का डर
सर पर मुसीबतों ने बनाया निडर
सिसकियां तो भरती रही
सुलगता लावा
फूटते रुदन से झिलमिलाई निर्मलता
सुनहली गाछ सा मृगमन देता रहा
केवल कस्तूरी सा छलावा
पर खामोश यातनाओं ने
गहराई संवेदनशीलता

हेमलता यादव 

हेमलता यादव

हेमलता यादव शोधार्थी इग्नू मोब. 09312369271 459 सी/ 6 गोविदंपुरी कालकाजी नई दिल्ली 110019