कविता : दस्तक
माँ सुन ले करूण पुकार
अब आ भी जा मेरे द्वार
हार गया हूँ मै तुझे पुकार
अब तो दे दस्तक मेरे द्वार
कब से आस लगाये बैठा
त आयेगी कभी मेरे द्वारे
मैं दीन हीन बालक हूँ तेरा
कैसे वाहन में तेरा सजाऊँ
जब जब पड़ी है मुसीबत
मैनें तुझे पुकारा बार बार
सुन लें माँ करूण चीत्कार
आ कर दे तू मेरा उद्वा
दस्तक दी मैंनह हर शाम
पाया न तुझे किसी शाम
हार गया हूँ अब तो मैं माँ
नाम है बस यह ही जाम
— डॉ मधु त्रिवेदी