कविता : शुष्क आर्द्रता
मुझे लगा तुमने
कुछ कहा
नजरें उठा कर देखा
तुम्हारी उगंलियां फोन पर
मचल रही थीं
घना अंधेरा सहम गई
मुझे लगा तुमने
छुआ पर वो
हंसी थी तुम्हारी जो
खनक कर करीब से गुजरी थी
अपने में गुम तुम्हारे कदम आगे बढ़े
जिन्हें कुछ दूर तक
नापा मैंने अचानक
शुष्क आर्द्रता के आभास ने
बर्फ किए मेरे
उमड़ते जज्बात
तुम्हारे क्षणिक सामीप्य से
अनचाहे अलविदा
कहते हुए चल दी मैं
मुझे लगा तुमने
पीछे मुड़कर देखा
पर चले गए थे तुम,
मेघाच्छित मन लिए
अपनी राह ली मैनें
तुम्हारे ख्याल के साथ
एक बेबस प्रतीक्षा
कभी पूरी न हो सकने वाली आस
के साथ अपनी मृगतृष्णा में
जहां तुम्हारा साया
तो हो सकता है
पर तुम नहीं
कभी नहीं ।
— हेमलता यादव