“कुंडलिया छंद”
गर्मी का है बचपना, जीवन हुआ मोहाल
अभी जवानी देखना, बाकी है दिन लाल
बाकी है दिन लाल, दनादन पारा चढ़ता
मौसम है बेहाल, दोपहर सूरज बढ़ता
कह गौतम कविराय, पेड़ पौधों में नर्मी
झुके हुए कुमलाय, कपारे चढ़ती गर्मी।।
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी