चरक : एक पर्व
भारतवर्ष पुरातन से ही रहस्यों और आश्चर्यों का देश रहा है। यहां पर हर प्रदेश समय समय पर बङे बङे उत्सवों का आयोजन करता रहता है।
जिससे भारत को उत्सवधर्मी देश (फेस्टिव कंट्री) कहा जाता है। उसी का एक हिस्सा है पश्चिम बंगाल। पश्चिम बंगाल में होने वाली दुर्गा पूजा विश्व विख्यात है। यहां पर दुर्गा पूजा देखने देश – विदेश से प्रतिवर्ष भारी संख्या में लोग उपस्थित होते हैं।
उसी पश्चिम बंगाल में एक पर्व मनाया जाता है, जिसे ‘चरक पर्व’ के नाम से जाना जाता है। इसे चरक मेला पर्व भी कहते हैं, क्योंकि इस उत्सव पर यहां बहुत बड़े मेले का आयोजन भी किया जाता है। यह पर्व पश्चिम बंगाल के साथ साथ त्रिपुरा तथा पूर्वोत्तर और भी कई राज्यों में मनाया जाता है। परन्तु यह मुख्य रूप से पश्चिम बंगाल में बङे जोर शोर से मनाया जाता है। स्थानीय लोगों के अनुसार इस पर्व की शुरुआत लगभग 250 वर्ष पूर्व हुई थी।
यह पर्व ‘पोएला बोईशाख’ (नया साल) के एक दिन पहले, अर्थात चैत्र माह के अंतिम दिन (14-15 अप्रैल को) मनाया जाता है। इस पर्व को देखते ही आपका दांतों तले उंगली दबा लेना स्वाभाविक है। इसे अलग अलग कलाओं के साथ मनाया जाता है, जिसमें लोहे की रॉड को गाल के इस पार से उस पार करना, आग पर चलना, कांटा झांप, बोटी झांप (सब्जी काटने का धारदार औजार) पर नंगे बदन कूदना, आदि आदि।
परन्तु इसके अलावा सबसे मुख्य और सबसे कठिन है चरक के पेङ की रस्सियों में लगे हुक को अनुयायियों की पीठ में लगाकर उन्हें हवा में चरखे की तरह घुमाना।
इस उत्सव में मुख्य है चरक का पेड़। चरक के पेङ का मतलब: एक सखुआ खंभा लगाया जाता है। जिसके ऊपरी हिस्से में पहिया लगाया जाता है, तथा पहिए से रस्सी लगाकर उन्हीं रस्सियों में हुक लगाया जाता है। उसी हुक को अनुयायियों की पीठ में लगाकर चरखे की भांति घुमाया जाता है। चरक का पेड़ लगाते समय पूजा की जाती है, यदि पूजा में कोई रुकावट पैदा हो तो किसी अनुयायी की जान जा सकती है। इस पूरे क्षेत्र को सिद्ध जल से भी घेरा जाता है।
चरक पूजा मेले की पूर्व रात्रि सबसे बड़ी तांत्रिक क्रिया होती है, जिसके अनुसार तांत्रिक तलवार लेकर मध्य रात्रि को चारों दिशाओं में निकल जाते हैं। तथा सुबह तक उन्हें कहीं से भी मानव खोपड़ी लानी होती है। बताया जाता है कि, इस खोपड़ी को चरक मंदिर में मिट्टी में दबा दिया जाता है तथा अगले वर्ष निकाला जाता है। यह सारी पूजा-अर्चना शिवजी को प्रसन्न करने के लिए होती है।
— दीपेन्द्र सिंह भदौरिया “देव”