ग़ज़ल
हर जगह वाह वाह मत कीजै
खुद को खुद से तबाह मत कीजै।
ठोकरें गर लिखा मुकद्दर में ।
आप फूलों की चाह मत कीजै ।
रासते जो नही दिखा सकते
उनसे कोई सलाह मत कीजै ।
मैं किसी गैर की अमानत हूँ
प्यार यूं बेपनाह मत कीजै ।
आज भी सच का बोल बाला है
चोर को आप शाह मत कीजै ।
धर्म दिन लौट के नही आते
जिंदगी कब्रगाह मत कीजै ।
— धर्म पाण्डेय