कविता तन्हाईयाँ
सरिता की कल -कल ध्वनि
निर्झर की झर-झर ध्वनि
ऋतुराज का मस्तानापन
कैसे सूने हृदय में राग जगाये
मद में मस्त गरजता बादल
इन्द्रधनुषी बिखेरता बादल
मुस्कुरा कर बिखराये छटा
पर सूने हृदय में राग न जगाये
बिछा रखी चादरें गहराई तक
नाप रखी थाह तन्हाईयों ने
चाहतों का बजता नहीं डंका
अंगद सा पैर जमा रखा है
व्याकुल व्यथित हूँ इसलिए
चाहतों का उधाँ सूख गया
ऊसर बंजर हुआ मन खेत
तन्हाईयों ने मकां बना रखा
— डॉ मधु त्रिवेदी
मार्मिक रचना