ग़ज़ल
मिलेगा मौका कब राजनीती से अमलदारों
अब तो तनिक पानी अपना चेहरा निहारो
बूंद बूंद जी रहा है लातूर का हर निवाला
क्रिकेट के मैदान से उसे अब तो उबारो।।
सनक की भी अपनी एक औकात होती है
जीवन के दहलीज पर यह खेल न दुलारो।।
खेल को खेल ही रहने दो सुनो यारों मेरे
जीवन से खेलने का घिन विचार न विचारो।।
आज पानी पानी हुआ जा रहा है गुलिस्तां
रहने दो फिर पानी पर महाभारत न हंकारो।।
कितना बहाओगे पानी जैसा यह पैसा पैसा
फिर चाँद की चाँदनी कैसे उतारोगे सितारों।।
जरुरी नहीं हर कीमत पर तौला जाय इंशान
जरुरी है कि इन्शानियत न बिकने पाए बाजारों।।
दुकानों में सामानों की फहरिस्त बहुत है गौतम
हर मौसम में कारी बदरिया न पुकारो रे बहारो।।
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी