ऐ अजनबी….
ऐ अजनबी….
जब कभी ज़िंदगी में
दर्द से बेज़ार होकर
तेरी निगाहें छलक उठे
और तब तेरे पास कोई ना हो
सिर्फ तेरी तनहाई के…
तो अपनी उस तनहाई को
अपना साथी बना लेना…
बता देना अपने दिल का दर्द
इक बार लिपट जाना उससे
और ज़ार-ज़ार रो लेना…
शायद तब तुम्हें अपने
ज़ख़्मों पर मरहम का एहसास हो
तेरी पलकों में छुपे शबनम
खिलखिला कर हंस उठे….
जानते हो क्यूँ….????
क्यूंकि अपनी तनहाई से
ज्यादा हमदर्द कोई और नहीं होता।