कविता

गर्मी का महिना

आया गर्मी का महिना
सूर्य उगले आग का गोला
तावे जैसा तपती धरती
जीव जन्तु हुयें त्रस्त
गर्मी सें व्याकूल रहते पूरे दिन
धूँ धूँ करके लूँ है चलता
गर्म हवा संग धूल उडाता
सभी पसीने से तर-बतर होते
घने पेड की छाव ढूढँते फिरते
कही भी तो शितलता मिलें
गर्मी से राहत को तरसें
नदी,तलाब,झील,झरने का
जल भी अब सुख चलें|
             निवेदिता चतुर्वेदी

निवेदिता चतुर्वेदी

बी.एसी. शौक ---- लेखन पता --चेनारी ,सासाराम ,रोहतास ,बिहार , ८२११०४

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