“गज़ल”
गर्मी की छुट्टी का कुछ तो प्लान बनाएं
चलो इसबार सपरिवार लातूर हो आएं
सुना है पानी को भी अब प्यास लगी है
मौका है सुनहरा उसकी प्यास बुझाएं।।
रखो दश बीस बोतल फ्रिज से निकालों
बच्चों को कहो नया कैमरा न भूल जाएं।।
होटल के मैनेजर को ठीक से समझा दो
कह दो उससे ए.सी. का सर्विस कराएं।।
बाबू से कह दो हर बिल का भुगतान करे
बगीचे में झूला कुर्सी आरामदार लगवाएं।।
सहेलियों के घर पर बड़ी गाड़ी भिजवा दो
मैनेजर से कह दो कमरा साथ ही सजाएं।।
बच्चों का खिलौना आया कि बाकि देखो
मेरी साड़ी के सूटकेश कहीं छूट न जाएं।।
कितना समझाऊं तुम्हें माटी के पुतला हो
वृक्ष रोपण की फाइल कार्यालय से लाए।।
होता नहीं तुमसे एक काम भी सलीके से
तालाब अरु पोखर कभी गहरा करवाए।।
किसानों का बोझ धान गेहूं कहाँ दाल है
फटी गुदड़ी में कोई पैबंद सिलवा पाए।।
बाढ़ में डूब गए गाँव शहर पानी बहा के
समंदर से कहो सूखी नदियों को भिगाएं।।
वापस चलो बिना पानी के बोतल हो तुम
इनकी प्यास पर प्यासे का लेबल लगाए।।
आज ही लगाउंगी एक पौध अपने आँगन
सखियों से कहूँगी वो भी बगिया बुलाएं।।
बाबुल से कहूँगी एक पोखर खनाने को
मैया से कहूँगी गीत ताल तलैया की गाएं।।
बिरना से कहूँगी गाँव छोड़ के न जाना
भौजी से कहूँगी झूला सावनी न भुलाएँ।।
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी