वेद को पढ़ना पढ़ाना चाहिए वेद को सुनना सुनाना चाहिए
ओ३म्
वेद को पढ़ना पढ़ाना चाहिए
वेद को सुनना सुनाना चाहिए।।
वेद के अनुकूल हो हे आर्यों
आचरण अपना बनाना चाहिए।।
यज्ञ, उत्सव, धार्मिक सत्संग में
नित, सहित परिवार आना चाहिए।।
छल कलह से पूर्ण वातावरण में
प्रेम की गंगा बहाना चाहिए।।
हो सदा आरूढ़ निज कर्तव्य पर
पूज्य ऋषि का ऋण चुकाना चाहिए।।
जो भटकते फिर रहे हैं मोहवश
सत्य पथ उनको बताना चाहिए।।
मत भलाई तुम किसी की भूलना
हाँ भला कर भूल जाना चाहिए।।
मनुज का निर्माण हो जिससे चरित्र
गान ऐसा शुद्ध गाना चाहिए।।
लाभ कहने से न कछ होगा ‘प्रकाश’
कार्य कुछ करके दिखाना चाहिए।।
कल 22 अप्रैल, 2016 को हमनें पण्डित प्रकाश चन्द्र कविरत्न जी का ‘‘शुद्धि” विषयक एक प्रेरक गीत प्रस्तुत किया था। आज प्रातः उनकी पुस्तक से लघु व विस्तृत उनके लगभग 20 गीतों को पढ़ा। आपके सभी भजनों में शब्दों की जो सरलता व भावों की गम्भीरता है, उसे पढ़कर आनन्द रस ने ऐसा प्रभाव उत्पन्न किया कि उपन्यास के समान रोचकता का आनन्द आ रहा था और पुस्तक छोड़ने का मन नहीं हो रहा था। ऐसा मन कर रहा था कि इन सभी को पाठकों के सम्मुख प्रस्तुत किया जाये जिससे वह भी हमारे समान आनन्द विभोर होकर कविरत्न जी की प्रतिभा का अनुमान कर सकें। देश काल व परिस्थिति के अनुसार हम आज यहां केवल एक उपर्युक्त भजन देकर ही सन्तोष कर रहे हैं। पाठक उनके गीतों की पुस्तक मंगाकर स्वयं आनन्द ले सकते हैं। आशा है कि पाठक इसे पसन्द करेंगे।
-मनमोहन आर्य
प्रिय मनमोहन भाई जी, अति मनमोहक गीत.
नमस्ते बहिन जी। इस गीत के शब्द भी मुझे अच्छे व अलौकिक प्रकार के लगे। इसी कारन मैंने इसे प्रस्तुत किया है। २८ मार्च के बाद आज ही मेरा कंप्यूटर वा इसकी प्रॉब्लम दूर हुई है। सादर।
बहुत अच्छा भजन !
नमस्ते आदरणीय श्री विजय जी। इस गीत के शब्द मुझे अच्छे व अलौकिक प्रकार के लगे। इसी कारन मैंने इसे प्रस्तुत किया है। आपको गीत अच्छा लगा, यह जानकार प्रसन्नता हुई। सादर।