पण्डित चमूपति द्वारा ऋषि दयानन्द का गौरव गान
ओ३म्
हमारे भूले बिसरे पूर्वज
ऋषि दयानन्द का व्यक्तित्व और कृतित्व सात्विक बुद्धि के लोगों के आकर्षण व प्रेरणा का स्रोत वा केन्द्र रहा है। अनेक लोग आर्यसमाज की विचारधारा का परिचय पाकर और सत्यार्थप्रकाश पढ़कर या फिर आर्यसमाज के समाज सुधार के कार्यों से प्रभावित होकर आर्यसमाजी वा वैदिक धर्मी बने और फिर उन्होंने देश, धर्म व समाज की प्रशंसनीय सेवा की। ऐसे ही आर्यसमाज के एक सुप्रसिद्ध विद्वान एवं बहुमुखी प्रतिभा के धनी पण्डित चमूपति जी थे। आप संस्कृत, हिन्दी, इग्लिश, उर्दू व फारसी आदि अनेक भाषाओं के विद्वान व प्रभावशाली वक्ता थे। उनका व्यक्तित्व भी आकर्षक एवं प्रभावशाली था। आपकी हिन्दी, संस्कृत व उर्दू आदि में अनेक रचनायें हैं जिनमें से एक सुप्रसिद्ध रचना ‘‘सोम सरोवर” भी है। सोम सरोवर में आपने सामवेद के पवमान सूक्त के मन्त्रों की अत्यन्त मनोहर व्याख्या की है। आर्यसमाज के विद्वान व नेता महाशय कृष्ण ने इस पुस्तक की समीक्षा कर प्रशंसा करते हुए लिखा था कि यदि निष्पक्षता से साहित्य का नोबेल पुरुस्कार दिया जाता तो पण्डित चमूपति जी की यह रचना नोबेल पुरुस्कार प्राप्त करने योग्य थी। ऐसे विद्वान द्वारा महर्षि की महिमा का गान करने वाले कुछ शब्द पाठकों को भेंट कर रहे हैं।
पण्डित चमूपति जी ऋषि दर्शन नामक अपनी लघु पुस्तिका में ‘अमर दयानन्द’ शीर्षक के अन्तर्गत लिखते हैं कि ‘आज केवल भारत ही नहीं, सारे धार्मिक, सामाजिक, राजनैतिक संसार पर दयानन्द का सिक्का है। मतों के प्रचारकों ने अपने मन्तव्य बदल दिए हैं, धर्म पुस्तकों के अर्थों का संशोधन किया है, महापुरुषों की जीवनियों में परिवर्तन किया है। स्वामी जी का जीवन उन जीवनियों में बोलता है। ऋषि मरा नहीं करते, अपने भावों के रूप में जीते हैं। दलितोद्धार का प्राण कौन है? आदर्श सुधारक दयानन्द। शिक्षा प्रचार की प्रेरणा कहां से आती है? गुरुवर दयानन्द के आचरण से। वेद का जय जयकार कौन पुकारता है? ब्रह्मर्षि दयानन्द। देवी (स्त्री) सत्कार का मार्ग कौन दिखाता है? देवीपूजक दयानन्द। गोरक्षा के विषय में प्राणिमात्र पर करूणा दिखाने का बीड़ा कौन उठाता है? करूणानिधि दयानन्द। (संस्कृत व आर्यभाषा हिन्दी के प्रचार प्रसार की प्रेरणा कौन करता है? वेदर्षि दयाननन्द।) आओ! हम अपने आपको ऋषि के रंग में रंगे। हमारा विचार ऋषि का विचार हो, हमारा आचार ऋषि का आचार हो, हमारा प्रचार ऋषि का प्रचार हो। हमारी प्रत्येक चेष्टा ऋषि की चेष्टा हो। नाड़ी नाड़ी से ध्वनि उठे – महर्षि दयानन्द की जय।
पापों और पाखण्डों से ऋषिराज छुड़ाया था तुने।
भयभीत निराश्रित जाति को निर्भीक बनाया था तूने।।
बलिदान तेरा था अद्वितीय हो गई दिशाएं गुंजित थी।
जन जन को देगा प्रकाश वह दीप जलाया था तूने।।’
हम आशा करते हैं कि पाठकों को यह लघु प्रयास पसन्द आयेगा।
–मनमोहन कुमार आर्य