सामाजिक

आग को रोकिये !

आये दिन ख़बरों में प्रतिदिन कहीं न कहीं आग की घटनाएँ देखने सुनने को मिल जाती है! आज तो शुबह ही चार पांच जगहों से भयंकर आग लगने की खबर सूनी/देखी. आग बुझाने के लिए दर्जनों दमकल आग बुझाने के लिए जाते हैं. फिर भी काफी जान माल की क्षति हो जाती है. भयंकर पानी की कमी से जूझते सरकार और जनता का पानी आग बुझाने में ही बेकार हो जाते हैं. कहीं कहीं पर पानी की कमी के चलते आग बुझाने में काफी देर हो जाती है, अंत: हम सब की जिम्मेवारी बंटी है कि आग न लगे उसके लिए सावधानी बरतें. आग लगने पर तुरंत उपलब्ध संसाधनों से बिझाने का हर सम्भव प्रयास करें बिजली के कारन लगी आग पर पानी डालने से पहले सुनिश्चित करें कि बिजली काट दी गयी है या बिजली के लिए उपयुक्त अग्निशमन यंत्र का प्रयोग करें. कारखाने जहाँ उच्च तापक्रम और ज्वलशील पदार्थों का वातावरण रहता है, आग लगने की संभावना बनी रहती है.
आग लगने के मुख्य कारणों पर अगर गौर किया जाय तो मूल रूप से इसके तीन करक हैं ओर तीनो को मिलाकर ही प्रतिफल प्राप्त होता है . यथा ताप, ज्वलनशील पदार्थ और ऑक्सीजन = आग . इन तीनो में से किसी भी एक हटा दिया जाय तो आग लगने की संभावना न के बराबर होगी. ताप किसी भी कारणों से पैदा हो सकती है जैसे गर्मी के दिनों में वातवरण का तापक्रम ऐसे ही ज्यादा रहता है. एक छोटी सी चिंगारी चाहे जैसे भी पैदा की गयी हो, अगर वहाँ ज्वलनशील पदार्थ और हवा यानी ऑक्सीजन है, तो आग लगने की संभावना प्रबल हो जाती है.
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ज्यादातर मामलों में यह सुना जाता है कि विद्युतीय शोर्ट सर्किट से आग लग गयी. आइये अब यह समझने की कोशिश करें की विद्युतीय शोर्ट सर्किट होता क्या है और यह उत्पन्न कैसे होता है ?
ओम का नियम हम सबने पढ़ा है उसके अनुसार विद्युतीय धारा (कर्रेंट) = विभवांतर (वोल्टेज)/अवरोध (रेजिस्टेंस)
विद्युतीय ताप उत्पन्न = (धारा)२ × अवरोध × समय ( करेंट२ × रेजिस्टेंस × टाइम )
शोर्ट सर्किट (लघु परिपथ) का मतलब होता है न्यूनतम अवरोध और अधिकतम धारा (करेंट).  अधिकतम धारा का वर्ग यानी बहुत ज्यादा ताप- बहुत ज्यादा ताप मतलब, ज्यादा तापक्रम और ज्यादा तापक्रम, मतलब अग्नि का प्रज्वलन- कोई ज्वलनशील पदार्थ जैसे रबर, प्लास्टिक कागज , कपड़ा, लकड़ी आदि कुछ भी हो हवा हर जगह मौजूद ही रहती है- आग लगेगी. आग लगेगी तो आसपास जितने भी ज्वलनशील पदार्थ होंगे सबको चपेट में ले लेगी. आग लगने से आसपास की हवा गर्म होकर ऊपर धुंए के साथ निकल जायेगी तो खाली जगह भरने के लिए चारोतरफ की हवा दौड़ पड़ेगी फलस्वरूप आग को जलने फ़ैलने में मदद ही मिलेगी. धीरे धीरे यही आग भयंकर रूप धारण कर लेती है, जिससे जान माल की भारी क्षति होती है. हम सभी जानते हैं कि बिजली के दो नग्न तार अगर आपस में किसी कारण वश टकड़ा गए तो चिंगारी (स्पार्क) निकलेगी और आग लगने की संभावना बढ़ेगी.
आग शुरुआत में बहुत छोटी होती है, अगर उसे तत्काल बुझाने का प्रयास किया जाय तो जल्दी बुझ भी जायेगी. इसीलिए आजकल महत्वपूर्ण स्थानों पर अग्निशमन यंत्र रखने की ब्यवस्था होती है. बिजली के उपकरण में लगी आग हो तो कभी भी पानी से न बुझायें, नहीं तो आपको विद्युत झटका लगेगा और आप उसके प्रभाव में आ जायेंगे. उसके लिए कार्बन डाइऑक्साइड युक्त उपकरण का प्रयोग करें. अगर पता है तो मुख्य स्विच को ऑफ कर दें. हमेशा ही सही क्षमता वाले उपकरण का प्रयोग करें. तारों के जोड़ को इन्सुलेटेड टेप से ‘कवर’ करें कहीं भी विद्युत उपकरण को खुला न छोड़े या उससे बिना जानकारी के छेड़ छाड़ न करें. अगर कोई भी उपकरण तार आदि बहुत पुराने हो गए हैं या उनमे कुछ गडबडी है तो फ़ौरन बदल दें या बिजली मिस्त्री से दिखला दे.
इसके अलावा माचिस की तीली, सिगरेट आदि को पूरी तरह बुझाकर ही फेंके. गैस सिलिंडर को अच्छी तरह बंद रक्खें. जरा भी गंध होने से गैस सिलिंडर को खुली हवा में रख दें और अगर संभव है तो ग्राहक सेवा केन्द्र को सूचित करें .
अग्निशमन विभाग के फोन नंबर को टेलीफोन के पास ही लिखकर रखें या अपने मोबाइल में सेव कर रखें.
अति ज्वलनशील पदार्थ जैसे पेट्रोल, केरोसीन आदि को कभी भी खुला न रखें न ही इसे उच्च तापक्रम के पास रक्खें.
आग के भी कई प्रकार होते हैं :-
जंगल में वृक्ष के डाल जब आपस में घर्षण करते हैं तो भी अग्नि उत्पन्न होती है, जिसे दावानल कहते हैं . इस आग से जंगल की सूखी लकड़ियों एवं पत्तों के अलावा पूरे जंगल में तबाही मच जाती है और जंगल के साथ जंगली जानवरों का भी भारी नुकसान होता है.
इन सब आग के अलावा एक और आग होती है पेट की आग जिसे जठराग्नि कहते हैं. यह आग जब लगती है तो सारे आग इसके सामने फीके पर जाते हैं!
‘दिल की आग’ के बारे में मुझे ज्यादा अनुभव नहीं है. इसके बारे में अनुभवी ब्यक्ति जानकारी दे सकते हैं.
इसके अलावा और भी कुछ आग हैं :- जैसे बदले की आग, ईर्ष्या, डाह, चिंता, अहंकार, चिंता, अपने आप को सर्वश्रेष्ठ बनाने की चाह, दूसरे को दुखी कर खुद प्रसन्न होने की चाह, खिल्ली उड़ाने का भाव, अत्यधिक दुःख, अत्यधिक खुशी, तड़प, …. आदि आदि ……

जितनी प्रकार के आग हैं, उन्हें शुरुआती यानी प्रारंभिक अवस्था में बुझाना बहुत ही आसान होता है. पर जब यह प्रचंड रूप धारण करती है तो सबको जलाकर ही शांत होती है.
(अगर इस आलेख के माध्यम से कहीं भी आग रोकने में मदद मिलती हो तो मैं अपने आपको धन्य समझूंगा – जवाहर )

2 thoughts on “आग को रोकिये !

  • जवाहर लाल सिंह

    आदरणीय भामरा साहब, सादर अभिवादन! आपने लेख के मर्म को समझा, इसके लिए मैं आपका आभारी हूँ. आज सुबह-सुबह ही टी वी ख़बरें देखी तो पाया कि अनेको जगहों में भीषण आग लगी है. तभी मैंने सोचा कि यह पोस्ट डाला जाय! हम सबको अपनी तरफ से कोशिश करनी चाहिए कि दुर्घटना न हो जाय!

  • जवाहर सिंह जी ,लेख अच्छा लगा . आग लगने के कुछ कारण तो ऐसे होते हैं जो हमारे वश की बात नहीं होती जैसे जंगलों को आग लेकिन बहुत कारण ऐसे हैं जिन की तरफ लोगों का धियान नहीं जाता . कभी कभी मैं भारत आया करता था तो बहुत चीज़ों को देख कर अक्सर मैं कहता था कि यह सेफ नहीं है तो घर के लोग अक्सर हंस कर कह देते थे कि हम बाहर से आ कर नुक्ताचीनी बहुत करते हैं , मैं भी चुप्प हो जाता .हमारे घर में बिजली का मीटर बाहर लगा हुआ था जिस के ऊपर छोटा सा सीमेंट का छायेदान बना हुआ था, मैंने उन को कहा कि बारश के पानी के छींटे इस पर पड़ने से कोई बड़ा हादसा हो सकता है और बाद में यह हादसा हुआ भी . एक और खतरनाक काम किया हुआ था कि छत पर ऐसी जगह एक प्लगग लगा हुआ था जो बहुत खतरनाक था ,इस को भी मैंने दिस्कुनैक्त किया . एक दिन तो मुझे पता चला कि एक बकरी एक बिजली के खम्बे से लग कर मर गई . मुझे खुद को एक दिन झटका लगा जब मैं दिली आया हुआ था . घर के लोग बाल्टी में पानी डाल कर उस में इमर्शन हीटर डाल देते थे ताकि नहाने के लिए पानी गर्म हो जाए . जब मैं नहाने गिया तो मुझे झटका लगा लेकिन बच गिया .यानी सेफ्टी का तो इंडिया में रिवाज़ ही नहीं है .जब कोई हादसा हो जाता है तो कहते हैं कि भगवान् की मर्जी थी .

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